मेरे खुदा बचाएं सबको गुनाह से।
गुजरा हूँ जिनके खातिर काँटों की राह से।
देखा उसी ने मुझको शक की निगाह से।
खुशियो की हिस्सेदारी सबने कुबूल की,
तौबा है बस सभी को मेरी कराह से।
जिसने चलाये पत्थर मेरी जमीर पर,
घायल हुआ पड़ा है वो भी तो पाह से।
रिश्तों की तल्खियों ने ऐसी लगाई आग,
तपने बदन लगा है सर्दी की माह से।
खंजर छिपा हुआ है सबकी पनाह में,
जाकर पनाह मांगू किसकी पनाह से।
शायद हमारी कोशिश में ही कमी रही,
मंजिल नहीं मिली तो शिकवा क्यों राह से।
कर दें हुजूम सारी नेकी की राह पर,
मेरे खुदा बचाएं सबको गुनाह से।