मेरे कुछ मुक्तक
मेरे कुछ मुक्तक
(1)
हृदय की बात मत करना हृदय मजबूर होता है ।
हृदय की बात के आगे न कुछ मंजूर होता है ।
बताता है चलाता है फैसले तक सुनाता है
हृदय की चाल चलने का अलग दस्तूर होता है।
(2)
स्वयं को साध कर रखना आनन्द ही आनन्द है।
नेह को बांध कर रखना आनन्द ही आनन्द है ।
सजग रहना अथक सहना दूसरों के लिए जीना
बिना लालच के कुछ करना आनन्द ही आनन्द है।।
(3)
नहीं पहचान बिकती है न अनजान बिकता है ।
जानवर की तरह देखो फ़क़त इंसान बिकता है।
चंद सिक्को की खातिर हवस की आग जलती है
आज के दौर में देखो सिर्फ ईमान बिकता है ।
(5)
हकीकत जानते सब है मगर कोई कह नहीं पाता।
तटों के संग चल कर भी धार में बह नही जाता ।
वही जीना वहीं मरना वहीं सब ख़्वाब का बुनना
पटक लो लाख सिर लेकिन गति को सह नही पाता।
(5)
एक एक साँस को भर कर जीना ही हकीकत है।
यहीं सब भोग कर मरना जन जन की हकीकत है।
न लेना हैं न देना है नहीं कोई आस तलक रखनी
लिखा जितना मुकद्दर में उतना मिलना हकीकत है।।
(6)
खार तो खार होता है कभी मीठा नही होता ।
उठाएं आँख रखता है कभी झुकना नही होता।
वो अपने तीखेपन की बना कर साख रखता है
कभी भी टूट कर गिरना या मुरझाना नही होता।।
(7)
गुलों से तुम करो बातें हमे तो खार बेहतर है।
फूल मुरझायेंगे पर शूल मर कर भी बेहतर है।
हवा की न फ़िकर उसको धूप भी उसको प्यारी है
जिंदगी को सिखा जाता दुख तो सुख से बेहतर है।।
(8)
न पाने का असर देखा न खोने का असर देखा ।
सुबह और शाम दोंनो में हवाओं का असर देखा ।
हुई नाकाम सब कोशिश हार थक करके सब बैठे
उसी बस वक्त में हमने दुआओं का असर देखा ।।
(9)
दवा जब काम न आये दुआ तब काम करती है।
दिलो की गहर से चल कर लबों पर नाम रटती है।
उभरती है लिए जिसके है उसी में डूबती देखी
असर होने तलक बस वह अपना काम करती ll
सुशीला जोशी
9719260777