मेरे कान्हा
चलो घनश्याम की नगरी वहीं होगा सबेरा अब।
है ढलती सांझ की बेला वहीं होगा बसेरा अब।।
यहां दुनियां की महफिल में रहे हरदम अकेले ही।
बहुत तन्हा है दिल मेरा मिलेगा साथ तेरा अब।।
अरे नटखट सुनो अरजी तुम्हारे हम दीवाने है।
हमारा कुछ ना दुनियां में तुम्हारा ही सहारा अब।।
तुम्हे दिल तोड़ देने की बुरी आदत पुरानी है।
मेरा क्या छीन लोगे तुम ये दिल है तुम्हारा अब।।
मेरे जीवन की उलझन अब हवाले है तेरे कान्हा।
तुम्ही रहबर हमारे हो तू ही आशिक हमारा अब।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)