मेरे कान्हा
राधा का मन बोले मेरे कान्हा, मेरे कान्हा।
मीरा का पीर (दर्द) कहे मेरे कान्हा ‘मेरे कान्हा।
मन सूनी सब सूना ।
स्वभाव समर्पण बोले मेरे कान्हा ,’मेरे कान्हा
जीवन खोकर जीने लगी मनमोहना
मन है राधा अप्रतिम कान्हा
तू जो कहे कन्हैया मेरे ,तू जो कहे कन्हैया मेरे
वही बन जाऊं मैं,तेरे चाहतों के रंग रंगू।
बस तेरे सांसों में रहूं ,रहूं हरदम तेरे ही भावों में मेरे कन्हैयाँ।
मेरे कन्हैया ‘मेरे मनमोहना।
अपनाकर कर देना चाहे जो देना।
जरा प्रीत जता देना।
मेरे मन मोहना ‘ ,मेरे कान्हा
अप्रीतम छवि दिखलाकर
मुझे ना भुलाना
तू है बड़ा सयाना।
तुझ संग रहूं, तुझमें रमूं ।
बस इतनी विनती मेरी सुन लेना।
मेरे मनमोहना मेरे कान्हा…………