मेरे कांच के घरों में
वो महजब के नाम पर जला गये मेरी गरीब बस्तियाँ
मुझ गरीब परिंदे की डूब चली कागज़ की कश्तियाँ
नफरत उग गई थी हर तरफ खेत खलिहानों में भी
मेरे कांच के घरों में पत्थर लेकर आई बड़ी हस्तियाँ
अशोक सपड़ा की कलम से
वो महजब के नाम पर जला गये मेरी गरीब बस्तियाँ
मुझ गरीब परिंदे की डूब चली कागज़ की कश्तियाँ
नफरत उग गई थी हर तरफ खेत खलिहानों में भी
मेरे कांच के घरों में पत्थर लेकर आई बड़ी हस्तियाँ
अशोक सपड़ा की कलम से