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5 Jun 2022 · 1 min read

मेरे कच्चे मकान की खपरैल

कभी इन्हीं खपरैलों की छतों
से बना
मेरा एक घर हुआ करता था,

बाँस की लकड़ियों ने
बाँध रखा था
कच्ची दीवारों के सरों को,

उन पर कतारबद्ध बैठी ये
खपरैलें,

रेलगाडी के डिब्बों की तरह
ऊपर से नीचे की ओर दौड़ती हुई।

न जाने कितनी क़तारें रही होंगी इनकी!!

बारिश, धूप व आँधियों में
इनके तले ही तो
महफूज रहे थे हम।

साल दर साल,
पीढ़ी दर पीढ़ी!!

पक्की ईंटों और सीमेंट
से जंग हार कर,

आज उपेक्षित सी पड़ी हैं
घर के पिछले हिस्से के
एक टूटे फूटे से कोने में
घर की बेकार चीजों के साथ,

फिर शायद कभी कबाड़ के साथ
घर छोड़ कर बेघर भी हो जाएं
बिना कोई गिला शिकवा किए

इनके एहसान का बोझ
कच्ची दीवारों के साथ,
फैल रहा है शनै शनै
अतीत की ओर तकते मन के कोने में।

😊😊😊😊

Language: Hindi
6 Likes · 6 Comments · 796 Views
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