“मेरे उर के अंतस तक “
मेरे उर के अंतस तक ,
पहुँचो तो कोई बात बने।
नवरंग भरा नवगीत लिखूँ मैं,
उमंग भरा संगीत बनूँ मैं।
मेरे उर के अंतस तक ,
पहुँचो तो कोई बात बने।
सपनों के महल बनाऊँ मैं,
वल्लरियों सा मण्डप सजाऊँ मैं।
मेरे उर के अंतस तक ,
पहुँचो तो कोई बात बने।
चन्द्र-किरन की बारिश में,
तुमको भी ले जाऊँ मैं।
कुछ मैं भीगूँ कुछ तुम भीगो,
एेसी आस जगाऊँ मैं।
मेरे उर के अंतस तक ,
पहुँचो तो कोई बात बने।
…निधि…