मेरे अपने
मेरे अपने
हो मस्तानी जान सुंदरी।
सहज भावनायुक्त शंकरी।।
अति निर्मल पावन सुखदा हो।
मधु प्रसाद हरती विपदा हो।।
हितकर वाणी सहज बोलती।
अपने दिल की सकल खोलती।।
प्रिय में नव -जीवन नित भरती।
सारी पीड़ा क्षण में हरती।।
तुम नयनों की प्रिय तारा हो।
उर के चौखट का द्वारा हो।।
नित आँगन में झूमा करती।
बनी शोचनी घुमा करती।।
चाल दिव्य मतवाली न्यारी।
ओढ़ चुनरिया अनुपम प्यारी।।
बनी बहुरिया घर को मोहे।
बिंदिया मस्तक पर अति सोहे।।
तुझको पा कर खुश प्रिय मन है।
रोमांचित यह स्वयं वदन है।।
वृंदावन की प्रीति राधिका।
सरल भावमय कृष्ण साधिका।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।