मेरे अध्यत्मिक संस्थान से मेरा यक्ष प्रश्न
मेरे अध्यत्मिक संस्थान से मेरा यक्ष प्रश्न
फेसबुक में रोज़ कुछ आवाज़!
हिन्दू एक हो जाओ ।
हिन्दू धर्म नष्ट हो रहा है।
कल सारा भारत दूसरे धर्म में बदल जायगा, जागो, जगाओ एक हो जाओ.
मैं इन बुद्धिहीन व्यक्तियों, संस्थानों से पूछना चाहता हूँ, हिन्दू कौन हैं, इन का धर्म क्या हैं, इन की उत्तपत्ति कब और कहाँ से हुई?
हिन्दू कोई धर्म नहीं, जो नष्ट हो जाये।
हिन्दू कोई जड़ व्यवथा नहीं जो क्षीण हो जाय।
हिन्दू एक मण्डल हैं। इस मंडल में 9 ध्रुव संस्थान हैं। हर संस्थान के अपनी दर्शन हैं। जो की आकर से निराकार ईश पर आश्रित हैं, तथा स-ईश्वरा से निर – ईश्वरा से प्रेरित हैं।
इन सब संस्थानों के स्थापनाकर्ता के दर्शन से प्रेरित शिष्य, उस संस्था से लिप्त हैं, तथा वे दूसरे किसी भी संस्था के विचारों को अपने जीवन में कोई स्थान नहीं देते।
यह स्तिथि हज़ारो साल से रही, हैँ और रहेगी।
अब प्रश्न हैं, यह रोज़ की आवाज किस हिन्दू संस्था के लोगो को अहान कर रही हैं।
निम्न संस्थानों के शिष्य अपने संस्थानों से पूर्ण तरह से लिप्त हैं। उन में कोई चंचलता नहीं.
1. ऋषि चर्वाका *पूर्ण नास्तिक
2. गौतम बुद्धा *नास्तिक
3. श्री महावीरा * नास्तिक
4. ऋषि कन्नौडा आस्तिक -नास्तिक
5. ऋषि गौतम आस्तिक – नास्तिक
6. ऋषि कपिला न – ईश्वरा आस्तिक -नास्तिक
7. ऋषि पतंजलि स -ईश्वरा आस्तिक -नास्तिक
8. ऋषि जैमिनी आस्तिक – नास्तिक
अंत में जिस संस्था में चंचलता का तीव्रता से संस्था के दर्शन से हट गए एवं जड़ हीनता बोध कर रहें हैं, वह हैँ
9. बदराया नारायणन ( वेदा व्यसा ) वेदांता . उत्तरा मीमांमासा।
जोकि पूर्ण रूप से आस्तिक आस्तिक हैं। यही एक संस्था हैं जो की ब्रह्म के परिभाषा से प्रेरित था, वह नष्ट हो रहा है।
कारण! इस दर्शन के अंतर्गत हज़ारो गुरु प्रकट हो गये तथा अपनी अपनी बीन बजाने लगे।
एक अदिष्ट ब्रह्म की हत्या के दोषी, सरल मनुष्य को भर्मित कर दिया।
तो इन आवाजो के लोगो को चाहिये इन गुरुओं को नष्ट करें।
जिन्होंने इस धर्म के मूलभूत सिद्धातो को नष्ट कर दिया ।
क्या आप आवाजो को पता है, यह मूलभूत सिद्धांत क्या था ?
जलातरक्षेत तैलात रक्षेत ,रक्षेत शिथिल बंधनात l
मूर्ख हस्त न दातव्यं एवं वदती पुस्तकम ll
Save me from water,
Protect me from oil,
and from loose binding,
And do not give me into hands of fools!
Anonymous verse frequently found at the end of Sanskrit manuscripts.
गुनेश्वर तपोधर्मा
ज्ञानम बहूशुशोभिनियम
हम ज्ञान के साधक है:-
प्रज्ञानं ब्रह्म : ज्ञान ही ब्रह्म है।
सर्वलौकिक मंदाकिनी आदर्श दर्शन
Guneshwer.tapodharma@gmail.com