मेरी P R O
डॉक्टर साहब मैं आपका बहुत एडवरटाइज करती हूं , जिस दिन आपको दिखाने आना होता है मैं सुबह से उठ कर पूरे मुहल्ले में ज़ोर ज़ोर से आप का नाम ले कर , ताली पीट पीट कर और नाच नाच कर कर सबको बता देती हूं कि आज मैं अपने सबसे अच्छे डॉक्टर को दिखाने जा रही हूं , जिसे चलना हो मेरे साथ चले उसे भी दिखवा दूं गी । मुझे लगा वो मेरे लिये वास्तविक तौर पर एक अवैतनिक स्वैच्छिक जनसंपर्क अधिकारी ( P R O = Public relation officer ) का काम कर रही थी । पर अनायास ही एक किन्नर को मेरे लिए एक P R O के स्वरूप में कार्य करते देखना मेरे लिये विस्मयकारी था ।
चिकित्सा जगत में अपना विज्ञापन करना और पी आर ओ नियुक्त कर अपना प्रचार करवाना नीति सम्मत नहीं है और न ही मैंने कभी कोई अपने लिए नियुक्त किया । पर जबसे कुछ अस्पताल , चिकित्सकों के बजाय व्यवसाइयों के द्वारा बनाये जाने लगे और उनका प्रबंधन भी चिकित्सकों के हाथों से निकल कर व्यसायिक हाथों में चला गया और सम्भवतः इन व्यवसायिक अस्पतालों ( corporate hospitals ) के द्वारा पी आर ओ नियुक्त कर उसके द्वारा अपना प्रचार प्रसार करवाने की परिपाटी शुरू की गई जिसके संचालन में खर्च का बोझ निश्चितरूप से मरीज़ के इलाज के दौरान उसकी जेब से निकाला जाता है । चिकित्सा जगत के व्यवसायीकरण के साथ साथ बेहतर उच्चस्तरीय स्तर के महंगे , पांच सितारा सुख सुविधाओं युक्त उपचार में व्रद्धि हुई है पर इसमें P R O संस्कृति का समावेश इसे और महंगा और आम आदमी की पहुंच के परे बना देता है । वर्तमान समय में प्रायः कोई विशेषज्ञ डॉक्टर अपना कोई निजी P R O नहीं पालते हैं । मेरी समझ से किसी चिकित्सक का सबसे अच्छा पी आर ओ स्वयं उसका मरीज़ होता है और ऐसे में उसके द्वारा लोगों को अपना उदाहरण देते हुए चिकित्सक की भलाई या बुराई के जो कसीदे गढ़े जाते हैं वो उस चिकित्सक का सर्वोत्तम प्रचार माध्यम होता है । सही अर्थों में हर रोगी अपनी परिणिति के अनुसार चिकित्सक का उसके व्यवसाय में प्रसार माध्यम सिद्ध होता है ।
एक बार जब वो दिखाने आई तो उसने मुझसे कहा
‘ डॉ साहब मेरे घुटनों का दर्द ठीक कर दो , अगर ये नहीं ठीक हो गा तो मैं नाचूं गी कैसे और अगर नाचूं गी नहीं तो मेरे लिये इस ढोलक , हारमोनियम बजाने वाले लोगों का खर्चा कहां से निकले गा । उनकी ज़िंदगी , रोज़ी रोटी भी तो मेरे पर ही निर्भर है ‘
मैंने उसे अपना वज़न जो करीब 120 किलोग्राम था को घटाने के लिये आहार नियंत्रण करने की सलाह दी जिसे वो हंस कर टाल गयी , पर उस दिन उसकी अपनी मण्डली के साथियों के प्रति जताई गई इस सम्वेदना और निजी ज़िंदगी में जिंदादिली से मैं बहुत प्रभावित हुआ ।
एक बार वो अधिक बीमार हालात में मेरे आधीन ईलाज़ के लिये भर्ती हुई । वो मधुमेह के साथ जहरबाद ( Septicemia ) की अनेक जटिलताओं से ग्रसित थी । उसकी गम्भीर बीमारी में इलाज के दौरान उसकी जिंदगी के खतरे को भांपते हुए मेरे द्वारा उसके साथ आये तीमारदारों को भलीभांति अवगत करा दिया गया । पूरे हालात समझने के कुछ देर बाद वे मुझसे आ कर बोले
‘ हमारी चंडीगढ़ बात हो गई है , आप किसी तरह दो दिन इनका हाल सम्हाल लीजिये परसों चंडीगढ़ से हमारे लोग कुछ कागज़ी खानापूर्ति के लिये आयेंगे फिर चाहे जो होना है सो हो । तबतक आप इनका अच्छे से अच्छा इलाज कीजिये और पैसों की बिल्कुल परवाह मत कीजिये ‘
उसके बाद मैं भी दिल लगा कर उसके उपचार में जुट गया । इस बीच रोगी और उसके समझदार तीमारदारों द्वारा मुझे पूर्ण सहयोग और विश्वास प्राप्त होता रहा ।
तीसरे दिन सुबह से मेरे उक्त मरीज़ के नज़दीकी शुभाकांक्षी मेहमानों का इंतजार था । उस दिन करीब दस बजे मेरे अस्पताल में दो महंगी लग्ज़री फॉर्च्यून कारों से करीब सात युवा किन्नरों के काफिले ने धड़धड़ाते हुए मेरे अस्पताल में प्रवेश किया । उनके आने से अस्पताल का वातावरण किसी विदेशी परफ्यूम की महक से गमक उठा । वे सभी सबका ध्यानाकर्षण अपनी ओर खींचते उच्च कद काठी वाले सुगठित मांसल सुतवां देह और किसी शिल्पकार की प्रेरणा को चुनौती देते व किसी कुशल प्लास्टिक सर्जन की दक्ष कला को दर्शाते , सिलिकॉन निर्मित कृतिम प्रत्यारोपित स्तन युक्त वक्ष और देह पर ब्रांडेड जीन्स टॉप जैसी आधुनिक वेशभूषाओं में धूपिया चश्में धारण किये हुए और महंगे स्मार्टफोन अपने साथ ले कर चल रही थीं जो उनकी सम्पन्नता का परिचायक सिद्ध हो रहे थे । यदि मुझे पहले से उनके आगमन का आभास नहीं होता तो यकाएक उन्हें पहचाना और किसी के लिए तो क्या मेरे लिये भी एक कठिन पहेली साबित हो सकता था । उन्होंने धाराप्रवाह मुझसे आंग्लभाषा में एक सुशिक्षित बुद्धिजीवी की तरह अपने रोगी के विषय मे वार्तालाप किया और कुछ अन्य कागज़ी खानापूर्ति कर जितनी तेज़ी से आये थे उतनी ही तेज़ी से प्रस्थान कर गये ।
इस बीच उनके परिचय के दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि उनमें से एक किन्नरी फ़ैशन डिज़ाइनर थी , दूसरी किसी प्रतिष्ठित ब्यूटी पार्लर की शाखाओं का संचालन कर रही थी तो कोई अन्य तीसरी किन्नरी का कार्यक्षेत्र आन्तरिकसज्जाकार के व्यवसाय से जुड़ा था ।
अब तक मैंने इन्हें अपने जीवकोपार्जन के लिये अक्सर किसी शुभ समारोह जैसे किसी के जन्मोत्सव , विवाह , दुकान या गृहप्रवेश के अवसर पर अपनी मंडली समेत आ कर पहले बधाई देते हुए कुछ देर तक अपने नृत्य एवं गान से सबको रिझाते हुए फिर अधिक धनराशि एवं अन्य वस्तुओं की मांग करते हुए ही देखा था , जो कि प्रायः जजमान की दान करने की सामर्थ्य से अधिक होने के कारण उसके द्वारा मना करने पर ये उसे तत्काल अपने अंगविहीन स्थल विशेष के प्रदर्शन की धमकी देने लगती हैं और उसका क्रियान्वयन करने से भी नहीं हिचकतीं हैं । ऐसे में जजमान के पास भी उन्हें किसी प्रकार समझा बुझाकर , मोलभाव करते हुए उन्हें कुछ दे कर उनसे अपना पिंड छुड़ाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता है । पर चलते समय उस घर और उसके निवासियों की झोली अपनी दुआओं और आशीर्वचनों से भर कर वे सबको निहाल कर देती हैं ।
शायद जीवन में यह स्पष्ट हो जाने पर कि भविष्य में उनका कोई जैविक उत्तराधिकारी ( Biological Successor ) नहीं हो सकता वे भौतिकता से निर्लिप्त संचय प्रव्रत्ति का त्याग कर गौतम बुध्द जी के बताये अपरिग्रह के नियम की सच्ची अनुयायी प्रतीत होती हैं जिसके अनुसार आवश्यकता से अधिक दान में मिली हुई वस्तु को अस्वीकार करने और संचय न करने को जीवन का आधार माना गया है ।
हमारे देश मे जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल को मंजूरी दे कर समाज का कलंक समझे जाने वाले और अक्सर भिक्षा पर जीवन यापन करने वाले इस वर्ग को सामाजिक जीवन , शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आज़ादी से जीने के अधिकार दे कर किन्नरों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की गई है । अब वे किसी को गोद ले कर अपना उत्तराधिकारी बना सकते हैं।
उस दिन उन्हें समाज में उन परिवर्द्धित , सम्मानित , उच्चस्तरीय , बेहतर व्यवसायिक गतिविधियों में लिप्त देख कर मेरे मन में उनके प्रति आस्था और सम्मान में व्रद्धि करते हुए मेरी धारणा बदल गई । पर इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि रामायण , महाभारत के काल से ले कर आज तक समाज में इस मानवजाति ने अपने संघर्ष और कौशल से सम्मानित स्थान प्राप्त किया है । इसका जीता जागता उदाहरण वे मेरे सम्मुख प्रस्तुत करते हुए चली गईं ।