मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो
अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो
जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो
तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो
गर तेरा संग हो गया होता “मदन ”
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो
ग़ज़ल (किस ज़माने की बात करते हो)
मदन मोहन सक्सेना