मेरी हैसियत
यूहीं नहीं जीता इस जहां में गैरों के लिए,
कुछ तो हस्ती रखता हूं जमाने के लिए,
माना कि बहुत दाग हैं मेरे इस दामन पर,
फिर भी पुकारते हैं कुछ लोग भुनाने के लिए ।
जिंदगी के सफ़र में अटकलें बहुत हैं,
इन अड़चनों से यूं मिटा न सकोगे,
सफ़र दर सफ़र निखारा है ख़ुद को,
तुम मुझे मेरे जाने के बाद याद करोगे ।
हैसियत को जो बट्टा लगाया है आपने,
इस छीज़ को पूरा करेगा कौन,
जी – हुजूरी से नहीं पाई है ये शोहरत,
उर्फियत की कमी को भरेगा कौन ।
शिकवा नहीं जो तूने घोंपा पीठ में खंजर,
फिर भी मुकम्मल नहीं हूं तेरी जमीं से,
आसरा करके बैठे हैं कि जैसे जा रहा हूं मैं,
बैचेन हैं फिर भी बहुत वे अपने शुकून से ।