मेरी हास्य कविताएं अरविंद भारद्वाज
चिपकू
आज मोबाइल बना है चिपकू, धरा रह गया फेविकोल
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
सिमट गया इसमें जग सारा, नहीं चाहिए अब भूगोल
लेकर घूमें नौजवान सब, शाट बनाए दिल को खोल
नन्हे मुन्ने को देकर ये, मम्मी, कहती हल्लो बोल।
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
खा गया घर के सारे रिश्ते, बैठ नहीं सकता कोई साथ
कोने में सब चैट कर रहे, चिपकू रहता सबके हाथ
बिना काम के व्यस्त हुए सब, काया हो गई है बेडोल।
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
रील बनाते दिन भर सारे, काम दिए हैं सब ने छोड़
बेबी डॉल से प्यारा लगता, एप्पल की है सबको होड
मां बाप अब मेहनत करते, बेटा करता आज मखौल।
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
मटक-मटक कर आज नचौरे, नए-नए देते हैं पोज
थकता नहीं देख लो चिपकू, शॉट बनाते इसमें रोज
मिलने की अब चाह नहीं है, करते हैं सब वीडियोकॉल।
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
नई खासियत इसमें देखो, साथ सभी के चलता आज
पकड़ नहीं छोड़े यह अपनी, आदत से चिपकू है बाज
राज छुपे नहीं इससे कोई, भेद रहा घर के सब खोल।
चुंबक से भी तेज पकड़ है, घर में सबसे ये अनमोल।
आज मोबाइल बना है चिपकू, धरा रह गया फेविकोल
अरविंद भारद्वाज
आया निमंत्रण -हास्य कविता
महीनों बाद कोई अपरिचित, मुझसे मिलने घर आया।
धीरे से पूछा खाली हो, मैंने भी अपना सिर हिलाया।
कवि सम्मेलन का हुआ जिक्र, फट से मैंने हाथ मिलाया।
पहचाननें में उसको, बिल्कुल भी न किया वक्त जाया।
हाथ मिलाकर उससे, मैंने थोड़ी पहचान बढ़ाई।
मैं भी एक कवि हूँ, उसको बार-बार यह बात बताई।
उसने कहा पहचान वाले से, आपका नाम सुना है।
बड़े चर्चे हैं जमाने में आपके, इसलिए आपको चुना हैं।
पिछली बार मंच पर, जाने कौन सी कविता सुनाई थी।
हंसी ठट्ठा मंच पर, लोगों में वेदना भर आई थी।
सब्र फूट पड़ा था श्रोताओं का , उस दिन सम्मेलन में।
सुना लाल टमाटर से, जमकर आपकी हुई धुनाई थी।
बात सुनकर उसकी, फट से मैंने भी जवाब दिया।
बुरी से बुरी बेइज्ज़ती का, जी भर के घुट पीया।
मैंने कहा श्रोताओं को भी, कविता की पहचान ही नहीं है।
कविता तो छोड़ो, हास्य रस का थोड़ा सा ज्ञान नहीं है।
कविता में हास्य रस, जेब में तो बिल्कुल तैयार था।
लोट-पोट हो जाते सभी, उसमें सास- बहू का प्यार था।
सुनते वही कविता तो, लोग तो जी भर के तालियाँ बजाते।
सैकड़ों की भीड़ में, मुझको सिर आँखों पर बिठाते।
काव्य पाठ से पहले गलती से, कविता जेब से फिसल गई।
याद मुझको थी नहीं अनजाने में, दूसरी पर्ची निकल गई।
सोचा मंच पर आया हूँ, अब कविता जरूर सुनाऊँगा।
नाम के साथ-साथ यहाँ से, थोड़ा पैसा भी कमाऊँगा।
पता नहीं था करुणा रस पर, इतना बड़ा बवाल हो जाएगा।
सुनने वालों में से एक धड़ा, बिल्कुल ही सो जाएगा।
करुणा वेदना सुनकर एक श्रोता की चीख निकल आई।
आयोजक बोले कविवर , आज यह कैसी कविता सुनाई।
श्रीमान वादा करता हूँ ,इस बार हास्य कविता सुनाऊँगा।
गलत पर्ची के फेर में किसी श्रोता को नहीं रूलाऊँगा।
इस बार सही ढंग से पर्ची हाथ में ही मंच पर लाऊँगा।
बुरा वक्त नहीं हुआ तो हास्य रस की कविता सुनाऊँगा।
यह सब सुनकर अपरिचित आयोजक का मन भर आया।
निकाला निमंत्रण और झट से निमंत्रण हाथ में थमाया।
उसने कहा बार-बार पर्ची वाले बहाने नहीं सुन पाऊँगा।
हंसी नहीं आई तो श्रोताओं से मैं ही तुम्हें पिटवाऊँगा।
-रचनाकार- अरविंद भारद्वाज
हास्य कविता- दुखड़ा
मित्र भादर की शादी को, बीस साल हो चुके थे।
दो दशक में श्रीमान पतिदेव, अपना पूरा वजूद खो चुके थे।
हँसमुख केवल कहने को थे, लेकिन कई बार रो चुके थे।
ताने और बीबी की मार खाकर, भूखे पेट सो चुके थे।
हिम्मत करके उसने एक बार हमें, अपना दुखड़ा सुनाया ।
शादी शुदा तो सब चुप हो गए, एक कुंवारा बौखलाया।
बोला दिल के दर्द को हमें, सालो बाद क्यों फरमाया।
तुरंत समाधान करते यार, हमें पहले क्यों नहीं बताया।
पिछले साल ही मैंने यह बात, अपनी सास को बताई थी।
ड़ंड़े से पड़ी उसकी पीठ पर मार भी उसको दिखाई थी।
अत्याचार जो कुछ भी हुआ सारी आपबीती उसे सुनाई थी।
बाकी तो ठीक है लेकिन मैंने, पिटाई पर आपत्ति जताई थी।
सास सुनकर बोली हाय मेरे राम, बेटी की किस्मत फूट गई।
निकम्मे पति से आज मेरी, आज आखिरी उम्मीद टूट गई।
रो तो ऐसे रहा है जैसे धन्ना सेठ का, कोहिनूर को लूट गई।
लगता है मेरी बेटी के हाथ से, कायर की लगाम छूट गई।
उनमें से एक बोला यार, अब क्या सारा दुखड़ा सुनाएगा।
अच्छा रहेगा जितना जल्दी, इस बात को भुलाएगा।
घरवाली की बात मान कर ही, घर में चैन आएगा।
ऐसी बातें करके दोस्त, अब क्या हमें भी रुलाएगा।
दूसरा बोला तुम्हारे घरेलू मामले में मदद नहीं कर पाएँगे।
हाँ बीबी को खुश रहने का एक नया तरीका तुम्हें बताएँगे।
घर की बातें बाहर मत सुनाओ, अंदाज़ तुम्हें सिखाएंगे।
दोबारा यदि दुखड़ा सुनाया,तो यार मिलने भी नहीं आएंगे।
#अरविंद_भारद्वाज
हास्य कविता-लाटरी
सुबह-सुबह एक कवि के मोबाइल पर, एक मैसेज आया।
आपकी लॉटरी खुल गई है, उसमें शीर्षक उसनें पाया।
एक करोड़ रुपए की लाटरी का,उन्हें विजेता दिखाया।
नीचे दिए गए नंबर पर बात करो, अंत में यही बताया।
मैसेज देख कर कवि ने, तुरंत घर में हड़कंप मचाया।
बीवी को दी आवाज और उसे रसोई से तुरंत बुलाया।
कहा भाग्यवान देखो, किस्मत ने दरवाजा खटखटाया।
करो़ड़ रुपए की लॉटरी से, घर में आएगी अब माया।
उसने ध्यान से नंबर पढ़कर, तुरंत अपना फोन घुमाया।
नमस्कार एवं बधाई हो,एक महिला ने उधर से फरमाया।
उसकी मीठी आवाज सुनकर, कवि थोड़ा सा शर्माया।
धीरे से बोला प्रसन्नता हुई, जो लाटरी मैसेज भिजवाया।
महिला बोली श्रीमान जी, आप तो बहुत भाग्यवान है।
हमारी करोड़ों रुपए की लॉटरी में,शीर्ष पर विराजमान है।
हमनें आपको चुना हैं,आपका हमारे दिल में मान है।
मैसेज में एक लिंक दबाओ,वही पैसों की भी ही खान है।
लिंक दबाते ही कवि के मोबाइल पर, एक ओटीपी आया।
ओटीपी पूछने के लिए महिला ने, फिर से फोन मिलाया।
पूछा ओटीपी और झट से,कवि को उसने धमकाया।
खाता खाली रखना था, तो फिर बैंक में क्यों खुलवाया।
महिला बोली पता है,कितनी मुसीबत से मैसेज करते हैं।
पकड़े जाने पर हजारों रुपए का, जुर्माना भी भरते हैं।
फोन मिलाने से पहले भी, हम कई बार पुलिस से डरते हैं।
शर्म नहीं आती , खाते को कभी खाली भी रखते हैं।
कवि बोला महोदया, तुमने आज गलत नंबर मिलाया।
एक हास्य कवि को, करोड़ों रुपए का सपना दिखाया।
अपनी मीठी-मीठी बातों से, मेरा दिल भी दुखाया।
इसीलिए तो हमने भी आपको, थोड़ा सा मूर्ख बनाया।
ठगी के मैसेज के बजाय हमें,खुशी का संदेश भिजवाओं।
खाली पड़े खाते में कभी तो, खुद भी रुपये डलवाओ।
कवि सम्मेलन में आकर, हँसी खुशी का लुफ्त उठाओ।
तमन्ना है कभी तो प्यार से, फूलों की माला पहनाओ।
अरविंद भारद्वाज
हास्य- कविता- नशेड़ी
नशे में धुत शराबी, खूब पीकर अपने घर जा रहा था।
एक हाथ में आधा, और एक में पव्वा घुमा रहा था।
होश में तो था नहीं, मुँह से बड़बड़ा रहा था।
चलते हुए वह बार-बार , झटके से खा रहा था।
अचानक से उस शराबी का पैर, जोर से लड़खड़ाया।
सामने पड़े कीचड़ में गिरा, और वह उठ नहीं पाया।
झटके से थोड़ा सा कीचड़ उसके, मुंह में भी आया।
न चाहते हुए जीभ फेर कर, उसने थोड़ा वह खाया।
खाते ही बोला अरे यार, यह पकवान किसने बनाया।
अच्छा बहुत बना रखा है, मेरे मन को बहुत भाया।
खोवा लग रहा है लेकिन, काला रंग किसने मिलाया।
कई दिनों बाद खोआ बर्फी ,जैसा स्वाद बड़ा आया।
थोड़ा सा चख कर कहा, सारा तो नहीं खा पाउँगा।
मेहमान नवाजी ठीक है, लेकिन मैं घर भी जाऊँगा।
निमंत्रण के लिए शुक्रिया, फिर से यहाँ आऊँगा।
इसकी बड़ाई अब दोस्त, बार-बार नहीं कर पाऊँगा।
गिरते पड़ते उसकी गर्दन, खंभे से टकराई।
हाथ जोड़कर उससे बोला, माफ करो मेरे भाई।
बीच रास्ते खड़े हो तुमकों,देता नहीं दिखाई।
अब छोडूँगा नहीं मैं तुमको, तेरी शामत आई।
हालत उसकी बदतर थी, संकट में फिर आया।
टक्कर देकर भैस को बोला,खंबा किसने लगाया।
भैस नें उसको सींग मारकर,दो फुट दूर गिराया।
बिजली का झटका समझा, नाली में फिर पाया।
शराबी को अपने घर पहुँचकर, थोड़ा होश आया।
बदन में उसने बदबू और, चेहरे पर कीचड़ पाया।
कहने लगा धोखे से, किसी ने नशा मिलाया।
बदनाम करने के लिए, ऐसा जाल बिछाया।
सौगंध खाई उसने, दोबारा पार्टी नहीं जाऊँगा।
नशा करने वाले से, अपना मैं पीछा छुड़ाऊँगा।
वादा करता हूँ आज से, पीकर मैं नहीं आऊँगा।
नशीली चीजों को कभी, हाथ भी नहीं लगाऊँगा।
#अरविंद_भारद्वाज