मेरी हस्ती
गर्दिश ने मुझे कुछ इस कदर मारा ,
मैं होकर रह गया बेबस बेचारा ,
लोगों की फ़ितरत ने मुझे इस कदर लूटा ,
ग़म ज़ब्त करते हुए मजबूर मैं हर बार टूटा ,
बदग़ुमानी से मोरिद-ए-इल्ज़ाम होता रहा ,
तर्क-ए- मरासिम के खौफ़ से बग़ावत न कर सका ,
अख़लाक़ , वफ़ा , एहसास सब कोरी बातें
होकर रह गई ,
इस ज़माने में मेरी हस्ती अदना सी नाकारा
होकर रह गई ।