मेरी सुनो ना.. जरा संग हो ना!
मेरी सुनो ना..
जरा संग हो ना!
फिसलता सा हर पल
जरा थाम लो ना।
यूं खुद को समेटे
थका जा रहा हूं
उचाटी है मन में
न सो पा रहा हूं
कुछेक ज़िक्र पिछले
फिर से करो ना
मेरी सुनो ना
जरा संग हो ना।।
निस्तेज तेरा
लगा क्यों है चेहरा
ये गंगा किनारा
लिए सुप्त धारा
उदासी हृदय की
अधर से धुलो ना
मेरी सुनो ना
जरा संग हो ना।।
लगा जैसे मेरी
ये अंतिम घड़ी है
चली लगती सांसें
कभी कुछ थमीं हैं
मुझे भय सताता
गले से लगो ना।
मेरी सुनो ना..
जरा संग हो ना!
स्वरचित
रश्मि लहर