मेरी साँसों से अपनी साँसों को – अंदाज़े बयाँ
मेरी साँसों से अपनी साँसों को
मेरी साँसों से अपनी साँसों को ,मिलाकर तो देख
दो पल के लिये ही सही , मेरी बाहों में आकर तो देख
खूबसूरत है ये दुनिया, करना कोई गुनाह नहीं
दो पल के लिए ही सही, मुझको अपना बनाकर तो देख
इश्क के चाहने वालेको, अपने इश्क का खुदा बनाकर तो देख
दो पल के लिए ही सही, खुद को मुझ पर मिटाकर तो देख
मुझे मालूम है कि तुझे, इन दो पलों के चरम का एहसास नहीं
इन दो पलों के लिए ही सही, खुद को मुझ पर लुटाकर तो देख
अजनबी नहीं हूँ मैं तेरे लिए, मुझ पर एतबार करके तो देख
दो पल के लिए ही सही , खुद को मेरी कहलाकर तो देख
तेरे इश्क में हमने खुद को किया कुर्बान, दो पल के लिए ही सही नज़रें मिलाकर तो देख
दो पल के लिए ही सही , खुद को मुझ पर निसार करके तो देख
मैं जानता हूँ तू है खूबसूरती का वो नजारा , जिसे हम क्या बयाँ करें –
दो पल के लिए ही सही, अपने हुस्न का नज़ारा हमें कराकर तो देख
आदमियत है तुझमे, नेकदिल है तू, यूं न कर हमसे किनारा
दो पत्र के लिए ही सही , इस आशिके-आवारा का सहारा बनकर तो देख
तेरी आरज़ू मेरा ईमाने–इश्क , तुझसे सिवा मुझे कोई कुबूल नहीं
दो पल के लिए ही सही, इस दीवाने – दिल की पुकार तो सुनकर तो देख
आबाद और बर्बाद भी हुए हैं इस इश्क की चाहत में इश्क के परवाने
दो पल के लिए ही सही , इस दीवाने की रुखसती आकर अपनी आँखों से देख
मेरी साँसों से अपनी साँसों को ,मिलाकर तो देख
दो पल के लिये ही सही , मेरी बाहों में आकर तो देख
खूबसूरत है ये दुनिया, करना कोई गुनाह नहीं
दो पल के लिए ही सही, मुझको अपना बनाकर तो देख