मेरी व्यथा
मैं किसे सुनाऊ अपनी व्यथा,
यह तो घर घर की हैं कथा,
एक तरफ ममता और स्नेह,
दूजी तरफ प्रेम की चाह,
मन रहता बहुत उदास,
बन गया रिश्तों का दास,
किनारों के बीच गया भटक,
चुभ रहे शूल रहते दिल मे खटक,
कितना समझाए अपने मन को,
फिर भी चला जाता हैं वन को,
कर संघर्ष रह अडिग ताने सीना,
यही जीवन है इसी का नाम जीना,