मेरी वो हसरत, जो हमेशा टूट जाती है
मेरी वो हसरत, जो हमेशा टूट जाती है,
मेरी क़िस्मत ही मुझसे यूं रूठ सी जाती है!!
प्यार हो जाना, जैसे ख़ुदा की इबादत हो गई,
इक ज़िंदगी से नई ज़िंदगी जुड़ सी जाती है!!
मस्लहत-ए-वक़्त की ज़रा सी सिसकी सुनो,
सुख़न-ए-तल्ख़ से बातें ज़रा बिगड़ सी जाती है!!
ये ज़िंदगी तुझे ज़रा पल भर जी कर देखते हैं,
हम-आग़ोश होकर जलवे इसके धर के देखते हैं!!
बहुत हसीं हो गई है, बड़ी मुद्दतों बाद ज़िंदगी,
सरेराह चलते चलते जैसे मंज़िल मुड़ सी जाती है!!
सुब्ह-ओ-शाम जारी रहती है ज़िंदगी की तलाश,
जज़्बातों के पन्ने सुकून-ए-क़ल्ब में लिपट सी जाती है!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”