मेरी वो बात अक्सर काटता है
मिरी वो बात अक्सर काटता है
मगर कमबख्त हंसकर काटता है
वो चिडिया घर से उड कर क्या गई है
बहुत मुझको मिरा घर काटता है
मिली है मुझसे जिसको सर बुलंदी
वही देखो मिरा सर काटता है
अगर मज़बूत है तेरा क़फस तो
बता फिर क्यों मिरे पर काटता है
सितम मज़लूम पर जब देखता हूँ
तो फिर रातों को बिस्तर काटता है
अभी से किस लिए हटते हो पीछे
हुनर शीशे का पत्थर काटता है
सितमगर से मिलाता है जो नज़रें
वही सर उसका बढ़ कर काटता है
किनारे पर पहुंचता है वो हर दम
जो हाथों से समन्दर काटता है
वही घुट घुट के जीता है यहाँ पर
ज़माने में जिसे ड़र काटता है
न जाने ये वबा कैसी है आतिफ़
गली कूंचों का मन्ज़र काटता है
इरशाद आतिफ