मेरी वफाओ
मेरी वफाओ का इनाम मुझे क्यों नही देते।
दिल से अपने मुझे निकाल क्यों नही देते।
तुम्हारी किस्मत की लकीरों में नही मैं शायद
तो मेरी खता का अंजाम मुझे क्यों नही देते।
दीवारों में लिखे हुए नाम अक्सर हमने
उन लिखे हुए नाम को तुम मिटा क्यों नही देते।
तेरी जुल्फों के साये में आज भी उलझा हूं।
उन जुल्फों के साए से तुम मुझे निकाल क्यों नही देते।
आज भी दबा हूँ तुम्हारी यादों के बोझ तले
मुझे अपनी यादों के बोझ से निकाल क्यों नही देते।
मेरे अंदर बसा हुआ है अक्स तुम्हारा
उस अक्स को निकाल क्यों नही देते।
मयकदे की और अक्सर कदम बढ़ते हैं
तुम अब मुझे अपना पता क्यों नही देते
बहुत दूर तक चलने के सपने दिखाये थे।
उन सपनो को देखने के लिए मुझे सुला क्यों नही देते।