मेरी लेखनी…
एक छोटी सी मुलाकात,
फिर हुई मीठी मीठी बात,
खुल गए दिल के द्वार,
जीवन में आई नई बहार,
हर पल रहती मुस्कान,
गुनगुनाता दिल मधुर गान,
खुशियों भरी होती भौर,
आनन्द का नही अब छोर,
छोटा लगता हर दिवस,
यहाँ वहाँ जहाँ देखो नवरस,
ग्रीष्म ऋतु भी हुई बसन्त,
विरह वेदना का हुआ अंत,
देखो कितना स्नेह झलकता,
मुरझाए फूल भी लगे महकता,
बरसो से जिसका था इंतजार,
अब हुआ उनका साक्षात्कार,
शब्द शब्द में बसी उनकी छवि,
वो कविता है, मैं उनका कवि,
हर पल दिल के पास रखता,
कितना मैं उनको संभालता,
हर कविता की वो है जननी ,
पूछो कौन हैं? अरे मेरी लेखनी,