मेरी लेखनी और तुम्हारी छवि
गीत गजलों का ज्ञान नहीं, बस टूटा फूटा लिखता हूं,
लेखनी मेरी मुझे प्यारी,पैसों पर नहीं बिकता हूं।
कोशिश है कि हीरे सा चमकूं लगा सके जो मोल नहीं,
बहुत जटिल है बुद्धि मेरी सीधा-सादा मैं दिखता हूं।।…
तेरी सुंदर छवि देखने के लिए मैंने खेल खेला है,
हर बरस तुम्हारे गांव में एक दिन लगता जो मेला है।
तुमसे गुफ्तगू करने के बाद भी वो लोग है अनजान,
जानते नहीं हैं कोई जिसे खेल जो हमने खेला है।।…
Writer:- Abhishek Shrivastava “Shivaji”