“ मेरी लालसा “
“ मेरी लालसा “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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शब्दों को क्यारियों
से चुन- चुन कर
कविता की
माला हम बनाएंगे !
सहज रंग -विरंगे फूलों
की खुसबू से सारा
आँगन गमकायेंगे !!
सुंदर सहज मनभावन
कविता लोगों को
अच्छी लगती हैं !
तिरष्कृत फूलों की
पंखुड़ियाँ सिर मुकुट
में शोभा देती हैं !!
रस शृंगार अलि के
गुंजन से मेरी कविता
सारी सज जाएगी !
वीरान पड़े इस धरती
पर नई कलियाँ
रोज खिल जाएगी !!
जब सुंदर सहज मनोहर
कविता के उपवन
को स्वीकारेंगे !
तब हम क्योँ मृगतृष्णा
में इधर उधर
अपना समय गमाएंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा ‘ परिमल ‘
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत