मेरी ये जिन्दगी
मेरी ये जिन्दगी ख़ुदा ने चटक रंगों से ऐसे संवारी है ।
आईना रोज मुझसे पूछता है कि क्या रज़ा तुम्हारी है ।
उम्मीदें हर पल हर दिन एक नया हौसला देती है मुझे,
लगता है अब मेरा हर इक सपना इक नई ख़ुमारी है ।
सोचता हूं कि मैं एक जुगनू हूं इस जग के तमस का,
अंदाज़ कहते हैं मेरे कि तू जुनून की एक चिंगारी है ।
अरमान ख्वाहिशों के सीने में कभी दफ़न होंगे नहीं,
हर रोज कुछ नया करने की अब दिल में बेकरारी है ।
परवाह नहीं के क्या होगा मेरा, लोग सोचते क्या होंगे
बस रूह और इश्क़ के साथ कुछ ऐसी अनूठी यारी है ।
मेरी ये जिंदगी ख़ुदा ने चटक रंगों से ऐसे संवारी है ।
आईना रोज मुझसे पूछता है कि क्या रज़ा तुम्हारी है ।
सुशील कुमार सिहाग “रानू”
चारनवासी, नोहर, हनुमानगढ़ राजस्थान