“मेरी यादें”
“मेरी यादें”
मैं फिर से बैंक कॉलोनी के
अंतिम मकान में जाना चाहता हूँ…
कुछ कच्चे-कुछ पक्के
अमरुद और अनार
तोड़ना चाहता हूँ
मिटटी में करना चाहता हूँ अठखेलियां
और राजा के घर कंच्चे खेलना चाहता हूँ…
पिताजी से लिए दस पैसे के चमचमाते सिक्कों से चने-मुरमुरे खाना चाहता हूँ…
सीप और रमी से गूंजती ताश की गड्डी की
आवाज़ सुनना चाहता हूँ
मैं फिर से बैंक कॉलोनी के
अंतिम मकान में जाना चाहता हूँ…
सुबक सुबक बिन बात मैं रोना चाहता हूँ
अपने भाई-बहनो के साथ माताजी का
वो निश्छल प्यार पाना चाहता हूँ….
मैं फिर से बैंक कॉलोनी के
अंतिम मकान में जाना चाहता हूँ…
मालुम मुझे बीते पल अब लौट नहीं सकते
फिर भी नए-नए सपने सजाना चाहता हूँ
मैं एक बार फिर वो जीवन जीना चाहता हुँ
हाँ
मैं फिर से बैंक कॉलोनी के
अंतिम मकान में जाना चाहता हूँ…
सुनील पुष्करणा