मेरी मुहब्बत
मेरी मुहब्बत
किसे बताऊं दिल का दर्द,
ज़ब हाथ मेरा खाली है.
मेरी मुहब्बत की दास्तान,
विजय कलम से निराली है.
बागो में बगिया महक सुंदर
फूलों की फूलवारी थी.
मेरी मुहब्बत, गुलाब फूल से
भी अधिक महक वाली थी.
क्या बताऊं यारों उनकी
हिरणी स मस्तानी थी
मेरी मुहब्बत की दास्तान
विजय कलम से निराली थी.
मेरी मुहब्बत शीतल चाँद थी
मै उनकी परछाया.
वह चढ़ चली स्वर्ग धाम
मै धरा के धरा रह पाया.
वह चाँद नहीं, पुष्प नहीं
वह इसी धरा की नारी थी
किसे बताऊं दिल का दर्द
वह कवि विजय को प्यारी थी
उड़ गईं चिड़िया बनकर, वह
पर महक अभी बाकी है
चाँद गया, सूरज उग आया
भीषण गर्मी भारी है.
किसे बताऊ दिल का दर्द
ज़ब हाथ मेरा खाली है
मेरी मुहब्बत की दास्तान
विजय कलम से निराली है
डॉ. विजय कन्नौजे अमोदी आरंग रायपुर