मेरी मुहब्बत गुलाब कली
मेरी मुहब्बत गुलाब कली
मेरी मुहब्बत गुलाब कली
है काँटों का ताज.
बिन मुहब्बत जीवन अधूरा
लगता है मुझे आज.
न लगता था पता चुभन की
ज़ब थी मेरी मुहब्बत साथ
कब बीतता था समय पता नहीं
बीत जाती थी बैरी रात.
ज़ब थी मुहब्बत साथ मेरी
कभी न माना हार.
काँटों के बीच खिली रहती
मेरी मुहब्बत साथ
खिली रहती मझदूवारी पर
विजय दिल का बाग
लहलहाते झूम जाते
भौरा पहुँचे हैँ पास
मेरी मुहब्बत गुलाब हैँ
हैँ काँटों का ताज
बिन मुहब्बत इवन अधूरा
लगता हैँ मुझे आज..
डॉ. विजय कन्नौजे अमोदी आरंग रायपुर
कृपया इसी विषय पर आज कविता माँगा गया हैँ इस लिए इस प्रकार कविता भेजना पड़ा है