मेरी मां
मुझे चलना नहीं आता था,
तू हाथ पकड़ कर चलना सिखाती थी।
गोदी में उठा कर मुझे आसमान
में चांद दिखाती थी।
कभी दुलार से तो कभी फटकार से
मुझे खाना खिलाती थी।
कान पकड़कर मुझको पढ़ने बैठाती थी।
सूरज की पहली किरण के निकलते ही उठ जाती थी।
मेरे लिए सब त्यारी करके फिर मुझे उठाती थी।
खुद चाहे न खाए पर मेरे लिए एक से बढ़कर एक व्यंजन बनाती थी।
खुद के लिए नहीं लेती थी कपड़े नए,
पर मेरे लिए सुंदर कपड़े दिलाती थी।
कितना भी दर्द हो मां को लेकिन मेरी मुस्कान देखकर वो भी मुस्काती थी।
उसको तकलीफ न देना कभी जो
तुम्हारा दर्द न देख पाती थी।
पैरों में जन्नत है उसके, कदम चूम लेना उसके जो तेरे हर काम में तेरा माथा चूम जाती थी।