Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Mar 2024 · 1 min read

मेरी मजबूरी को बेवफाई का नाम न दे,

मेरी मजबूरी को बेवफाई का नाम न दे,
इस बेदर्द दुनिया में अक्सर…
प्यार ही मजबूर हुआ करता है।

प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78

3 Likes · 413 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
धर्म के परदे  के   पीछे,  छुप   रहे    हैं  राजदाँ।
धर्म के परदे के पीछे, छुप रहे हैं राजदाँ।
दीपक झा रुद्रा
जिदंगी भी साथ छोड़ देती हैं,
जिदंगी भी साथ छोड़ देती हैं,
Umender kumar
शीर्षक - गुरु ईश्वर
शीर्षक - गुरु ईश्वर
Neeraj Agarwal
पत्थर - पत्थर सींचते ,
पत्थर - पत्थर सींचते ,
Mahendra Narayan
असली – नकली
असली – नकली
Dhirendra Singh
कैमरे से चेहरे का छवि (image) बनाने मे,
कैमरे से चेहरे का छवि (image) बनाने मे,
Lakhan Yadav
दिसम्बर की सर्द शाम में
दिसम्बर की सर्द शाम में
Dr fauzia Naseem shad
सावन आज फिर उमड़ आया है,
सावन आज फिर उमड़ आया है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जय श्रीराम
जय श्रीराम
Indu Singh
बदले की चाह और इतिहास की आह बहुत ही खतरनाक होती है। यह दोनों
बदले की चाह और इतिहास की आह बहुत ही खतरनाक होती है। यह दोनों
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
..
..
*प्रणय*
*झाड़ू (बाल कविता)*
*झाड़ू (बाल कविता)*
Ravi Prakash
अपराह्न का अंशुमान
अपराह्न का अंशुमान
Satish Srijan
जीवन और रोटी (नील पदम् के दोहे)
जीवन और रोटी (नील पदम् के दोहे)
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
" जीवन है गतिमान "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
"शक्तिशाली"
Dr. Kishan tandon kranti
रक्तदान
रक्तदान
Pratibha Pandey
काम
काम
Shriyansh Gupta
नाम लिख तो दिया और मिटा भी दिया
नाम लिख तो दिया और मिटा भी दिया
SHAMA PARVEEN
बीज अंकुरित अवश्य होगा
बीज अंकुरित अवश्य होगा
VINOD CHAUHAN
निकल आए न मेरी आँखों से ज़म ज़म
निकल आए न मेरी आँखों से ज़म ज़म
इशरत हिदायत ख़ान
महोब्बत करो तो सावले रंग से करना गुरु
महोब्बत करो तो सावले रंग से करना गुरु
शेखर सिंह
मन इच्छा का दास है,
मन इच्छा का दास है,
sushil sarna
Love Letter
Love Letter
Vedha Singh
आज के रिश्ते: ए
आज के रिश्ते: ए
पूर्वार्थ
क्यों अब हम नए बन जाए?
क्यों अब हम नए बन जाए?
डॉ० रोहित कौशिक
2750. *पूर्णिका*
2750. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
झूठ न इतना बोलिए
झूठ न इतना बोलिए
Paras Nath Jha
मेरी सरलता की सीमा कोई नहीं जान पाता
मेरी सरलता की सीमा कोई नहीं जान पाता
Pramila sultan
कविता
कविता
Rambali Mishra
Loading...