मेरी मंजिल
मैं जो हिलोरे लेता दीप
वो सुहानी मेरी मंजिल
मै जो हूँ अगर गमगीं
वो मुस्कान सी मंजिल
मैं उसको पा लेने को
उतावला हूँ क्योँ न भला
मै भटकता धूप में हूँ तो
वो मेरी छांव सी मंजिल
मैं जो हिलोरे लेता दीप
वो सुहानी मेरी मंजिल
मै जो हूँ अगर गमगीं
वो मुस्कान सी मंजिल
मैं उसको पा लेने को
उतावला हूँ क्योँ न भला
मै भटकता धूप में हूँ तो
वो मेरी छांव सी मंजिल