मेरी भोपाल सुहानी
मेरी भोपाल सुहानी, भोज काल के गौरव की एक जीवंत कहानी
बेगम और नवाबों की है, गाथा बड़ी पुरानी
हैं शैल शिखर सब हरे भरे, सुंदर झीलों से भरे भरे
मंदिर मस्जिद गजब तरासे हैं, मेरा शिल्प बयां करता है मेरी अकथ कहानी
हरी-भरी वादी है मेरी अदा निराली, पर्दा जर्दा नामर्दा और तहजीबी गाली
किसी भी हिल से देखो मुझको, लगती बड़ी सुहानी
खुशमिजाज भोपाल है मेरी, खुशमिजाज भोपाली
प्यार मोहब्बत भाईचारा, और मेरी कव्वाली
गंगा जमुनी संस्कृति की, सूरत जानी-मानी
अंग अंग में रंग भरा है, सूरत प्यारी प्यारी
एक नजर में हो जाती है, दुनिया मेरी दीवानी
मेरी भोपाल सुहानी