मेरी भी चिंता करो, सोच रहे हैं दांत/ बना भ्रांति-लांगूट यही है जगत् की वमन
बमन कर रहा क्रोध की, उछल -उछल नौ हाथ|
मेरी भी चिंता करो, सोच रहे हैं दांत||
सोच रहे हैं दांत, नाथ पर हम शर्मिंदा|
हिंसक मेरा नाम, आदमी का दिल गंदा||
कह “नायक” कविराय, प्रीति बिन, मैला-सा मन|
बना भ्रांति-लांगूट, यही है जगत् की वमन||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता