मेरी बेटी
मेरी बिटिया रानी।
मेरी गुड़िया रानी।
न जाने कब हो गई
वह इतनी सयानी।
बात -बात पर मुझे अब
वह समझाने लगी है।
मेरे देर से खाने पर वह
मुझे डाँट लगाने लगी है।
अब मुझे ही जीवन का
वह पाठ पढ़ाने लगी है।
अब जीवन का सीख मुझे
वह सिखलाने लगी है।
मेरे हर कामों में भी वह
हाथ बंटाने लगी है।
रिश्तो की परिभाषा भी
वह मुझे समझाने लगी है।
मेरे सपनों को पूरा करने में
वह दिन -रात लगाने लगी है।
मेरे आँखों में आँसू देखकर
वह चिन्ता जताने लगी है।
मेरे सेहत का ख्याल भी
अब वह रखने लगी है।
समय -समय पर दवा भी
अब मुझे देने लगी है।
मेरी हर बात को अब
वह ध्यान से सुनने लगी है।
सही गलत के फैसलों पर
अब वह अड़ने लगी है।
अच्छी बात यह है कि
वह हार नहीं मानती है।
अपनी मुकाम को पाने के लिए
वह जिद पर अड़ जाती है।
उसका यह जिद अच्छा है
जो मंजिल तक ले जाती है ।
कम से कम वह रोकर
घर पर बैठ तो नही जाती है।
वह अपने सपनों के लिए
जी जान लगा देती है।
लड़ना पड़े सपनों के लिए तो
सबसे लड़ जाती है।
उसका यह आत्मविश्वास देखकर
मुझे अच्छा लगता है।
उसका अपने लिए आवाज उठाना
मुझे अच्छा लगता है।
अपने से सभी बड़ों को वह
बहुत सम्मान करने लगी है।
छोटों के साथ भी वह
मिल-जुल कर रहने लगी है।
मेरे कुछ कहने पर वह
हँसकर बात उड़ाने लगी है।
तेरी साया हूँ कहकर
मुझे वह चिढाने लगी है।
~अनामिका