मेरी बेटी.. मेरे आँगन में…
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मेरी बेटी जब तू गोद में आई,
बहार आई है मेरे आँगन में…
तेरी नन्हें-नन्हें कदमों के पड़ते ही,
फूल बिखरे हैं मेरे आँगन में…
मेरी बेटी तू चाँद का टुकरा,
चाँदनी बिखरी है मेरे आँगन में…
तू जो हँसती है तेरी किलकारी से,
मोती बिखरते हैं मेरे आँगन में…
तू जो बात करती,खिलखिलाती,
जैसे चिड़िया चहकती है मेरे अाँगन में..
तू जो आई तो महक उठा घर पूरा,
जैसे इत्र बिखरी हो मेरे आँगन में..
तेरे चेहरे की सादगी ऐसी जैसे
तुलसी की बिरवा हो मेरे आँगन में..
तेरी बातों में शहद-सी मिठास,
गूँजता मंत्र गायत्री की मेरे आँगन में..
तेरे चेहरे के नूर से रौशन,
चाँद उतर आया है मेरे आँगन में…
तू देवी का अवतार लगती है,
लक्ष्मी, सरस्वती है मेरे आँगन में…
सबके लिये तो चाँद सूरज है,
पर तुझ से ही रौशनी है मेरे मन के आँगन में….
????—लक्ष्मी सिंह ??