मेरी बेटियाँ, मेरा जीवन !
वो तुतलाकर बोलना
पापा पापा , घर जल्दी आना
नटखट अदाओं से
कांधो पर लटकना
जो डांटा कभी तो ,
मुस्कुराकर मनाना ,
फरमाइशों की कतार,
और माँ जैसा श्रृंगार
बड़े हक़ से जताना अपना प्यार
मेरी चिंताओं में उसका दुलार
बड़ी होकर , मेरी बेटियां कब
उठाने लगी जिम्मेदारियां सब
कुछ करने को जो ठानी
हौसलो से लिखी ,खुद अपनी कहानी
माँ की सहेली ,
भाइयों की दुलारी
पिता का अभिमान
पिया की प्यारी
निश्छल ,सहनशील ,ममतामयी
शक्तिरूपेण और गरिमामयी
मेरी बेटियाँ
मेरा दर्पण
मेरा जीवन
उन पर अर्पण ।