मेरी बेटियाँ और उनके आँसू
ए हवा, ठहर जा तू मेरी बेटियों के आँसुओं की धारा लेकर आई है,
मेरी कोख ने जिसे जन्म दिया उनकी हसरतों को दफना कर आई है I
तेरे राह में कितने कांटे आये पर तूने हिम्मत नहीं हारी ?
अपने मुकाम को हासिल करना जीवन की चुनौती मानी ,
भारत का मस्तक जहाँ में ऊँचा करके तूने दीवाली जानी ,
गौरव देने वाली कली आज हवा के रूख से क्यों घबराई ?
ए हवा, ठहर जा तू मेरी बेटियों के आँसुओं की धारा लेकर आई है,
मेरी कोख ने जिसे जन्म दिया उनकी हसरतों को दफना कर आई है I
परदेशी, जरा डर हवा की रफ़्तार से वो कहीं तूफ़ान न बन जाये ,
हवा के सैलाब में जहाजों का महल तिनके की तरह न बह जाये,
तेरा सोने का आशियाना कहीं समंदर की लहरों में न गुम हो जाये ,
ए इंसान , तेरा जलता चिराग कहीं हवा के झोंकों से बुझ न जाये ?
ए हवा, ठहर जा तू मेरी बेटियों के आँसुओं की धारा लेकर आई है,
मेरी कोख ने जिसे जन्म दिया उनकी हसरतों को दफना कर आई है I
माली को खामोश देखकर कलियाँ गुलशन में विलाप कर रही ,
फुलवारी की बची हुई कलियाँ अपनी बारी का इंतज़ार कर रही ,
“राज” कलियों के आंसू मोती बनकर वक़्त की तरफ देख रही ,
जहाँ के मालिक, तुझसे तेरी बेटियाँ इन्साफ की गुहार कर रही I
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मेरा यह गीत मेरी लाखों बहन – बेटियों को समर्पित है, जो संघर्ष में जूझते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त करती है I
देशराज “ राज ”
कानपुर