मेरी बिटिया बड़ी नाजो से पली
मेरी बिटिया बड़ी नाजो से है पली
इतने लोगों की रसोई उससे कैसे बनी।|
सास-ननद चलाती हैं हुक्म दिनभर
बिटिया तू क्यों रहती है यूँ सहकर
करती नहीं ननद जरा सा भी काम
भाभी को वह समझती है एक गुलाम।
मेरी बिटिया बड़ी नाजो से है पली
संयुक्त परिवार में उसकी कैसे निभी।।
दिन-दिन भर वह खटती रहती
दर्द सहकर भी कभी कुछ न कहती
हाथ नाज़ुक हो गए उसके कितने ख़राब
पैरों की बिवाई वह छुपाती पहन जुराब |
मेरी बिटिया फूलों सी कोमल बड़ी
सूख के देखो कैसे अब कांटा हुई ||
रिश्तों की बांधे हाथों में हथकड़ी
हर काम को फिर भी तत्पर खड़ी
खेलने-खाने की उम्र में ब्याही गयी
ससुराल में कभी भी न सराही गयी
चैन से जीना वहां उसका हुआ हराम
क्या मज़ाल कि पल भर को मिले आराम।
मेरी बिटिया बड़ी नाजो से है पली
हर क्षण दिखे खिलखिलाती ही भली ||
कभी चेहरे पर उसके कोई भी सिकन न दिखी
विधना ने न जाने उसकी कैसी तक़दीर लिखी।।
मेरी बिटिया बड़े ही नाजो से पली
दिल देखो जीतने सबका वह चली …।।