मेरी प्रेम गाथा भाग 9
प्रेम कहानी
भाग 9
नवोदय विद्यालय में ग्रीष्मकालीन अवकाश हो गए और विद्या के अन्य विद्यार्थियों की भांति मैं भी अपने घर माँकी ममतामयी हाथों की रोटियां खाने घर आ गया था।घर में भी मैं चुपचाप ही रहता था और घरवालों से किसी भी प्रकार की मांग नहीं करता था।मेरी माँ भी नटखट और चंचल स्वभाव वाले बदले स्वभाव को देख हैरान,परेशान और चिंतिंत थी,क्योंकि माँ का ह्रृदय अपने बच्चों की हर प्रकार से फरख तो कर ही लेता हैं।
ग्रीष्मकालीन अवकाश दौरान एकदिन मेरी फेसबुक अकाउंट पर एक लड़की का मित्रता निमंत्रण प्रार्थना को देखा तो नाम के अंत में त्रिपाठी शब्द देख मेरा माथा ठनका और उत्साहित हो कर मैंने उसका फेसबुक अकाउंट खंगाला, क्योंकि परी का भी सरनेम त्रिपाठी ही था। वहाँ अकाउंट के अंदर झांककर देखा कि उसका घर के पत्ते के रूफ में कौशलपुरी कॉलोनी को देख मैं स्तब्धता रह गया ,क्योंकि यह पता तो तपरी का था।मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई थी और सांस उत्तेजना में फूल रहा था।वजह थी…परी त्रिपाठी।मैंने उसका स्क्रीन सॉट ले लिया।मैंनें संदेश संप्रेषित किया तो कुछ देर बाद मैं ब्लॉक कर दिया गया।मामला समझ से परे था, खुद ही फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी और खुद ही बलॉक कर दिया।अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि हो ना हो यह मेरे दिल कु शहजादी परी ही है।
उसने मुझे बलॉक जरूर कर दिया थि,लेकिन स्क्रीन सॉट पर से उसका मोबाइल नंबर सुरक्षित कर लिया था।मैं इस कशमकश में था कि परी को फोन करूँ या ना करूँ।लेकिन भय के कारण मैंनें उसको फोन नहीं किया।
जब इस घटना का जिक्र मैने दोस्तों से किया तो उनके अनुमान अनुसार भी यह फरी ही थी।उन्होंने मुझे फोन करने के लिए सुझाया और नंबर देने की बात कही।लेकिन ना ही तो मैंने कॉल कियि और ना ही मैंने दोस्तों को उसका नंबर दिया।
हरामी और प्रेमु का बेईमान भावुक मन कहाँ मानता है।कुछ देर बाद सोचा और डरते डरते कॉल कर ही दी और फिर……
उसने फोन रिसीव करते हुआ कहा-हैलो,कौन…?
आप कौन बोल रहज हो।
मै- हाँ…हैलो मैं संदीप……वो…फेसबुक पर आपकी रिक्वो आई थी ।
परी-हाँ..वो ना गलती से चली गई थी… आप द्वारा आईंदा इस नंबर पर कॉल मत करिएगा… प्लीज..।
और यह कहते ही कॉल कट गई।बड़ी चालाकी से उसने अपनी चोरी को छिपा लिया था।
कुछ दिन और मैं त्रिपाठी और कौशलपुरी कॉलोनी को लेकर परेशान रहा।
कुछ दिनों बाद मैं एक दिन चारपाई फर लेटा हुआ सुस्ता रहा था। फरी की मिस कॉल आई।मैनें नंबर मिलाया और उधर से आवाजें आ रही थी और मैंने धीमी और दबी आवाज में कहा…
हैलो…आप…कौन…
आवाज आई-आप संदीप भैयि ह़ ना ः
मैं-हाँ…मैं संदीप ही बोल रहा हूँ… हाँ जी, कहिए आप।
उधर से-..भैया मैं दिव्या…परी की छोटी बहन…वो परी दीदी आपको सॉरी कहना चाहती हैं….।
यह कहते ही उसने फोन परी को दे दिया।परी बहुत ही मधुर आवाज में बोली…।
…जी….आप मेरी वजह से घर गए…. आपकी बदनामी, बेईज्ज़ती हुई…मुझे नहीं मालूम था कि मामला इतना बड़ा और गंभीर हो जाएगा।मेरे कारण आपको अकारण बहुत कुछ सहना पड़ा। आई जम वैरी सॉरी..।
मैं -अरे परी कोई बात नही।आपने जानबछझ कर ही थोड़े किया होगा।
परी-जी थैंक्स ..आफने मुझे माफ कर दिया।
उससे फोन दिव्या ने लियि और कहा-
भैया,घर फर कथा हो रही है…आवाजें आ रही हैं… आब मैं फोन रखती हूँ…आप इस.नंबर पर फोन मत करिएगा।
मैं- जी..ओकै..।
फोन कटते ही मेरे साथ क्या गुजरी ,पूछो मत….।
हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम…वाली बात थी।
मानो मृत शरीर मैं जान आ गई हो।मेरे मरे मन में नई उर्जा का संचार हो गया था।मेरा मन अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा था और खुशी से लड्डू फूट रहे थे।हो भी क्यों ना मेरी जान परी से जो बात हुई थी।
उसके बाद फिर मेरी बात व्हाट्सएप पर परी की बड़ी बहन से होती है….
दिव्या-हाय..।।
मै-हाय
दिव्या-प्रदीप तुम कैसे हो.. मै परी की बड़ी बहन बोल रही हूं।
अब तो मै हैरान और हक्का बक्का रह गया..
मैं-हाँ… दीदी… मै ठीक हूं आप कैसी है..?
दिव्या-मै भी ठीक हूं..मुझे तुम दोनों के बारे में सारी बात का पता चल गया है।…ठीक है….अविनाश मै तुमसे रात में बात करूंगी… जागत रहना और …हां इसपर मैसेज या कॉल मत करना जब तक मैं ना कहूँ
ओके ……बाय।
मै-हाँजी दीदी ठीक हैं… नहीं करूंगा।
मेरी स्थिति ऐसी थु,जैसे काटो तो खून नही।अब मै दो दिन बेसब्री से निरन्तर इंतजार कर रहा था।समझ नहीं आ रहा था ,यह सब क्या हो रहा है… हाँ ..लेकिन जो भी हो रहा थि अच्छा लग रहा था।लेकिन कोई मैसेज या कॉल नहीं आई। तीसरे दिन जा के एक मेसेज आया…..और मेरी जान में जान…।।
हाय…अविनाश…
मैसेज देखते ही मैं खुश हो गयि और एक मैसेज के कई रिप्लाई दे डाले………।
नमस्ते दीदी….अरे दीदी.. कैसी हो आप …और परी कैसी है….आपने बोला था …..मैसेज मत करना मैंने बहुत बेसब्री से इंतजार किया….।
फिर एक छोटा सा मैसेज आया……..।
मैं दीदी नही ….परी हूँ …बेवकूफ…..।
और मै…घायल पागल दीवाना मस्ताना प्यासे बादल सा अपने बालों में हाथ फेरते हुए उत्तर दिया।
मैं-अरे. हाँ… प….री….परी..तुम कैसी हो ……।
रिप्लाई आया …
पूरा मैसेज तो पढ लो .. मैं दिव्या हूँ…परी तुमसे बात करना चाहती है…।
स्थिति हास्यास्पद हो गई थी… कभी दीदी..कभी परी…।
मै -बोलो…मेरी सच्ची प्यारी दीदी …।
रिप्लाई आया,-
हां…..संदीप …कैसे हो…सुनो..।
मैंने बोला -दीदी आप कहाँपर हो….।.
रिप्लाई आया-
परी के पास वो मैं तुम्हारी चैट पढ़ रही रही….ल
मैंने कहा-अब मैं क्या करूँ… ,दीदी…बताइए.. आप।
रिप्लाई आया-..संदीप कॉल करना।
मैने कहा- मैं बहुत खुश हूं …।दीदी आप नंबर दीजिए जल्दी…मैं अभी करता हूँ।
रिप्लाई आया-अरे अभी नहीं। इंतजार करो ।मैं रात को कॉल करूंगी।
मै – दीदी कब तक करेंगी….
रिप्लाई आया-..12 बजे से पहले..।
मैने कहा- ठीक है दीदी, मै सारी रात इंतजार कर लूंगा.।
रिप्लाई आया-
वो तुम्हे अपना बेस्ट फ्रेंड्स बनाना चाहती है और तुम उससे फ्रेंडली ही बात करना…..समझे ना।
मैं- ठीक है दीदी….।
रिप्लाई आया –
कॉल यामैसेज मत करना …प्रतीक्षा करना..बाय…।
अब तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।मन मांगु जो मुराद मिल रही थी।मैं तो सातवें आसमान पर था। मुझे
अब तो इतना तो समझ आ गया था कि परी के घर पर मेरी चर्चा होने लग गई है।
मैने रात में इंतजार किया और लगभग रात्रि ग्यारह बजे कॉल अाई….।कुछ देर दीदी से बात हुई फिर मेरे दिल और सफनों की रानी परी से और मैंने फिर वही सवाल कर दिया कि आपने मेरी शिकायत क्यों की थी ….?
परी ने सब कुछ बताया कि सभी लड़के और लड़कियां
कॉमेंट करते थे और मेरा नाम सीट तथा दीवारों पर लिख देते थे और मुझे लगा कि यह सब आप कर रहे थे। फिर मैंने सोचा कि यह सब सर को बता दूं लेकिन यह मामला इतना बड़ा और गंभीर हो जाएगा, मुझें इस बात का नहीं पता था….आपको मेरी वजह से विद्यालय छोड़ घर घर भी जाना पड़ा ….सॉरी….आई एम वैरी सॉरी।मेरे कारण आपको बदनामी और बेईज्ज़ती झेलनी पड़ी।
मैने कहा चलो छोड़ो पिछली बातों को…जो बीत गई सो बात गई…।आपने स्थिति स्पष्ट कर दी और महसूल कर लिया …मेरे लिये यही काफी है।मेरे मन कि बोझ भी हल्का हो गया।
थोड़ी देर तक मेरु और परी की बात होती है फिर दीदी मोबाइल ले लेती है बोली मै बाद मेरे से बात करूंगी। तब तक… बाय…खुश रहो.।
मुझे अभु तक यह पता नही चल पाया था कि बात किस दिशा में जा रही है और किस दशा में खत्म होगी।
अभी तक मैंने दो बार परी से बात की और दोनों बार कुछ खास नहीं हुइ …बस परी ने अभी तक सॉरी ही बोला था।उसने अपने दिल के पत्ते अभी नहीं खोले थे।
तीसरी बार फिर जब बात हुई परी की बहन दिव्या दीदी से बात हुई जो कि बहुत ही अच्छे स्वभाव की लड़की थी। दीदी से काफी देर बात हुई और दीदी ने बस यही कहा था,देखो ,संदीस मैंने आपको देखा नहीं… कभी घर के तरफ आओ तो घर पर आइजग। मैंने दीदी से उनके घर का पता पूछा और उसके बाद दिल के अजीज प्रिय मित्र अश्वनी भैया के पास गया और उसको विस्तार से सारी बाते बताई और परी के घर का पता भी बताया और फिर अश्वनी भैया के साथ बाइक से उनकी कॉलोनी में गया। सारी गली को खंगाल दिया लेकिन परी का देवलोक के हमें दर्शन नहीं हो पा रहे थे।और जब वापिस घर आकर कॉल किया तो दिव्या दीदी ने कहा कि हमने आपको घर के बाहर गली से निकलते हुए देख लिया था ,लेकिन भयवश हम आपको आवाज नहीं दे सके और ना ही घर से बाहर आ सके।
ग्रीष्मकालीन अवकाश समाप्ति कु ओर थी और उससे बिना मिले ही छुट्टियां भी खत्म हो गई और हम वापिस विद्यालय में आ गए थे।
विद्यालय पहुंचकर पहुंच कर मैं हॉस्टल में खिड़की के पास बैठ जाता और परी के हॉस्टल से आते जाते देखता रहता।और जब परी के दूर से ही दर्शन पा कर खुश हो जाता था जैसे मानो मैंने परी को हासिल कर लिया हो।अभी तक विद्यालय में परी से मिल मेरी कोई बात नहीं हुई थी ।
अब तो स्कूल में इतना अच्छा लगता था कि कभी घर ही नहीं जाता था और जब परी घर जाती थी तो मैं भी उसी दौरा घर चला जाता।सुबह से कब शाम और कब सुबह हो जाती फता ही नही चलता था।
अब सब कुछ बदल सा गया थि और अच्छा भी लगता था लेकिन परी की तरफ से अभी तक कोई भी रिसपोन्स नहीं मिल रहा था। बस उससे एक बार बात हो गई थी ,जिसकी वजह से मैं अब खुश रहने लगा था ।
जख दिन मै स्कूल में ही था परी की बड़ी बहन की कॉल आती है…क्योंकि मैंने चोरी छिपे मोबाइल फोन भी रखा हुआ था और यह सब परी और दिव्या दोनों बहनों को पता था। दिव्या दीदी से काफी देर बात हुई थी और मैंने परी के प्रति अपने दिल की भावनाओं को व्यक्त कर दिया था कि मै परी को किस तरह प्यार करता था और मेरी सारी प्रेम गाथा सुनने के पश्चात दिव्या दीदी ने मुझे बताया कि परी भी यह सब बता रही थी तुम उसे बहुत प्यार करते हो…।दीदी के मुख.से ये सुनकर बहुत अच्छा लगा ।दीदी ने कहा कि तुमने फरी से कोई बात की कि.कैसी है परी.।.ठीक है ना ।.कोई दिक्कत तो नहीं..। मैंने दिव्या दीदी को कहा कि यहाँ विद्यालय मेंलड़के लड़कियों को परस्पर बात करने की अनुमति नही होती।वैसे मैंने दीदी को मस्का लगाते हुए कह दिया थि कि भलि मेरे होते मेरी परी को क्या हो सकता था।
दीदी ने भी हँसते हुओयि पता नही मेरा दिल रखने के लिए कहा कि जब इस बार परी आई तो उससे बात करके मैं समझाएंगी।परी की छोटी बहन जो वो भी लाइन फर थी ,ने हंसते हुए कहा कि भैया परी भी आपको बहुत याद करती है,लेकिन वह पापा से बहुत डरती है,लेकिन वह सब कुछ समझती है आपउसे बहुत ज्यादा प्यार करते हो।
काफी देर तक परी की बड़ी और छोटी दोनों भहनों लंबी बात होती रही और इस प्रकार बीच बीच में मेरी उसकी बहनों सेहोती रहती थी।परी को भी इन सब बातों के बारे में पता चल गया था। मालूम हो गया था कि मेरी बात दीदी से होती रहती थीह। अप्रत्यक्ष रूप से तो पता चल गया था कि परी भी मुझे चिहथु थे।लेकिन परी से अभी तक प्रत्यक्ष रूप से सीधी बात ना होने के कारण और विद्यालय के कड़े अनुशासन के कारण हम दोन के बीच भौगोलिक दूरियां कायम थी। लेकिन इस बात की संतुष्टि थी मैं और परी उसकी बहन की मध्यस्थता के कारण एक दूसरे के बारे में छिपी भावनाओं को समझतें और जानते थे।
मैं भगवान हनुमान को ओर ज्यादा मानने लग गया था ,क्योकि मुझे लगता था कि उसके प्रति मेरी आस्था और विश्वास के कारण उन्होने परी के घर.के अंदर ही उसकी बहन के रूप में मध्यस्थ और सहायक पैदा कर दिया था।
जुलाई का महीना बीत गया था और अगस्त आ गया था और ये वहीं महीना है, जिसमें परी का जन्मदिन आता था।एक दिन परी की बहन दिव्या से बात कर परी के जन्मदिन की शुभकामनाएं देने बारे बात कि तो उसने पूर्ण आश्वासन दिया कि वह उस दिन वह परी को लाइन फर लेकर उससे बात खरवा देगी।
आखिरी वो दिन भी आ गया जिसका बेसब्री से इंतजाम था और मैंने मौका देख कर दिव्या के माध्यम से परी को फोन लाइन पर लेकर उसको जन्मदिन की शुभकामनाएं दे दी और मिलने पर मिठाई खिलाने की बात की तो उसने भयस्वरूप मुझे मना कर दिया।मैंने फिर वह रिंग लेने की बात कि परी उसको प्यार की निशानी के रूप में पहनी हुई वह रिंग मुझे दे दे।लेकिन परी से पहले दिव्या ने बात काटते हूए मना कर दिया कि यह रिंग तो परी ने मांगने पर उसे भी नहीं दी थी।जब दिव्या ने लाइन पर ही परी से रिंग देने बिरे पूछा तो मेरे जोर देने पर वह रिंग देने के लिए राजी हो गई ंर उसी दिन मौका मिलते ही वो रि़ग फरी से ले ली और अपनी अंगुली में डाल ली।मेरी अंगुली में वो डाली हुई रिंग ऐसे प्रतीत होती थी जैसेक्षफरी ने मुझे वो सगाई में बतौर प्रेम लाईसेंस डाली हो।मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।भगवान ने परी के रूफ में मेरा प्यार मेरी झोली में डाल मुझे धन्य कर दिया था।
हॉस्टल में आकर मैं बैड पर ही अर्द्ध कपड़ों में ही नाचने गाने व झूमने लगा और मैंने अपनी मित्रमंडली को उसके प्रेम इकरार की सारी दास्तान बता दी।सभी खचश हुए और मैंनै उनको प्यार की जीत पर पार्टी भी दे दी थी।वही रिंग डालकर मैं स्कूल में इने जाने लगा ओर सभी को पता चल गया कि संदीप को परी का प्यार मिल गया था।लेकिन अब भी फरी से खुलकर बाते और मुलाकाते नहीं होती थी।और इस प्रकार एक सुखद अंत के साथ मेरा ग्यारहवीं कक्षा का सत्र भी बीत गया था।
कहानी जारी……
सुखविंद्र सिंह मनसीरत