मेरी प्रेम गाथा भाग 8
प्रेम कहानी
भाग 8
और इस प्रकार भय,बेईज्ज़ती और बदनामी के साये तले दसवें की परीक्षा अच्छे अंक अर्जन से उतीर्ण कर लु थी और विद्यालय की सबसे मस्त और स्वतंत्र ग्यारहवीं कक्षा मैं प्रवेश कर लिया था और परी की भी नौंवी कक्षा के रूप में सीनियर विंग में……।
ग्याररहवीं नवोदय जिंदगी की सबसे रफ,टफ और मस्ती भरी जीवंत कक्षा थी,जिसमें विद्यार्थियों द्वारा खूब मस्ती की जाती थु,क्योंकि यह विद्यालय की उत्तम.सीनियर कक्षा होती थी जिस पर किसी प्रकार का का कोई अकुंश नहीं होति था,कयोंकि परीक्षा परीणाम और अनुशासन का पुरा दवाब बारहवें कक्षा फर होता था।और । सभी प्रकार के कैप्टन; विद्यालय कैप्टन,कक्षा कैप्टन, टीवी और मैस प्रभारी ग्यारहवीं कक्षा से ही लिए जाते थे, यानिकी सारी चौधर इन्हीं के पास होती थी।विद्यालय प्रशासन का विशिष्ट ध्यान भी बारहवीं पर ही केन्द्रित होता था।
मेरे सहपाठी मुझे यही रायशुमारी देते थे कि फरी वरी को छोड़ो भाई….खूब मस्ती, मनोरंजन करो।शेष लंबी जिंदगी में इससे भी सुंदर और मस्त परियां ओर मिल जाएंगी, लेकिन मेरे लिए परी तो परी थी,जिसका स्थान कोई भी नहीं ले सकती थी,जिसके विरुद्ध और बुराई में मैं एक शब्द भी नहीं सुन सकता था।और मैं चाहकर भी उसे स्वयं से दूर नहीं कर सकता था। मेरी यह सिरी बातें सुनकर अश्विनी भैया मेरे बहुत मजे लेते थे और कहते थे
भाई तेरे लिए तो परी तो किसी देवी से कय नही थी और बड़ी ही शिद्दत से परी को चाहा हैं ,दिल जिगर में बसाया है।
अश्विनी के बारे में बता दूँ।वह मेरा एख साल सीनियर बारहवीं कक्षा का विद्यार्थी था और मेरे प्रिय के अजीज मित्र का बेटा था और वो हमारी दूर की रिश्तेदारी में भी लगता था।उनकी लड़के लड़कियों में एक विशिष्ट पैंठ थी और उसका चक्र भी उसी की कक्षा की सुंदर लड़की पूजा से चल रहा था।वह एक हरफनमौला हंसमुख स्वभाव का बहुत ही सुंदर लड़का था। इससें पहले उससे मेरे इतने संबंध नहीं थे लेकिन दोनो सीनियर विंग में आने से हमारी नजदीकियां बढ़ गई थी और एक दूसरे के हमराज और हमसाया बन गए थे।मैं भी सीनियर होने के कारण बहुत सम्मान करता था और दिल से उसे बड़े भाई मानते बहुत प्यार रता था और अपनी सारी की सारी छोटी बड़ी बाते शेयर करता था।लेकिन शक्ल से सीधे.साधे लगने वाले अश्विनी भैया रसिया प्रकार के व्यक्तित्व वाले लड़के थे।वो हर जगह जहाँ भी जाते मुझे साथ ले जाया करते थे और मुझे भी उनका सानिध्य अच्छा लगता था।
और अब परी को फिलहाल दिल के एक कोने में रख दिया था और उसका परिणाम भी समय पर छोड़ दिया था,क्योंकि कुछ अनसुलझे सवालों का हल समय के गर्भ में ही छिपा होता था।मैं उसे अब भी उसे उतना ही प्यार करता था और शायद हमेशा…..।बस यही सोच रखा थि बारहवें के बाद विद्यालय से जाते समय अपनी मोटी डायरी में उसी के हाथों अपने प्रति भावनाओं को दर्ज करवा दूँगा और जीवन पर्यन्त बतौर निशानी स्वरुप अपने बहूमूल्य खजाने में सुरक्षित और आरक्षित रखूंगा।
अब जब कम पी टी असेम्बली,खेल कालांश के दौरान कहीं भी परी दिख जाती तो अंदर ही अंदर बहुत खुशी होती थी बहुत अच्छा लगता था। गेम टाइम में हर रोज परु आती थी और इसलिए मैं गेम टाइम में जरूर जाता था ।
हॉस्टल में कुछ भी रखने की अनुमति नहीं होती थी लेकिन एक दिन परी किसी स्टाफ वार्डन की साइकिल लेकर ग्राउंड पर चला रही थी और उस समय परी साइकिल पर मुझे बहुत प्यारी लग रही थी क्योंकि मैंने पहली बार उस साइकिल चलाते हुए देखा था और मैंने हॉस्टल की छत से कैमरा ज़ूम करके उसकासाईकिल चलाती हुई का विडियो भी बना लिया था।
अब मेरे लिए एक बहुत बड़ी समस्या यह थी कि परी पहले देखती थी तो लगता था शायद वो भी मुझे पसंद करती होगी लेकिन अब तो उसने मेरी शिकायत भी कर दी थी । मेरा उसका कोई संबंध, संपर्क नहीं था तो अब वह मुझे किन निगाहों से क्यों देखती थी।
और इसे लेकर मै बहुत परेशान हो गया कि आखिर मुझे वह देखती क्यों थी।
और इसी तरह एक दिन मैं हिंदी की परीक्षा दे रहा था तभी यूनिट परीक्षा दौरान मचझे पता चला कि परी बीमार है और वह अकेली एम. अाई. रूम में है क्योंकि परी की सारी खबर मेरे गुप्तचरों के माध्यम सेपास आ जाती थी।मुझे लगा कि परी से बात करके सच्चाई जानने का इससे अच्छा मौका कभी नहीं मिलेगा क्योंकि मैनें बहुत दिनों से यह सोच रखा था,मौका मिलते ही कि परी से ये जरूर पूछूंगा की मेरी शिकायत क्यों की और जब शिकायत कर भी दी तो मुझे अभी भी देखती क्यों थी।मेरी अंग्रेजी की यूनिट परीक्षा था ,लेकिन मैनें समय की नजाकत को देखते हुए और परी कि बीमार के रूप में अकेले होने का फायदा उठाते हुए तथा सच्चाई जानना हेतु परीक्षा का बहिष्कार कर दिया था।
फिर से हिम्मत जुटाते हुए मैं निर्भीक हो करएम अाई रूम जा पहुंचा और परी को देखते ही धड़कन तेजी से धड़कने लगी लेकिन अपने पर नियंत्रण करते हुए परी कि हाल चाल पूछा और कहा-
हाँ,परी तुम कैसी हो …क्या हुआ है आपको…। जवाब मिला ..ठीक है…. आप यहां से चले जाइए वर्ना कोई देख लेगा और हम दोनों को समस्या हो जाएगी।
प्लीज़…तुम यहाँ से चले जाओ।
मैने कहा …हाँ।.ठीक है…लेकिन पहले मुझे तुम यह बताओ कि आपन मेरी शिकायत क्यों की थी..और..अब मुझे आप क्यों।श देखती क्यों हो .?
वह बोली …हम आपको नहीं देखते….चले जाओ……….यहाँ से प्लीज चले जाओ..।
मुझे भी यह डर लग रहा था कि कहीं कोई देख ना ले और फिर मै वहां से अपने सदन में चला गया और वहाँ जाकर बहुत रोया …कि.. यह सब क्या हो रहा है।परीक्षा भी छोड़ दिया था । मिला फिर वही बाबा जी ठुल्लू। सारा दिन अजीब सा लगा सिर दर्द हो रहा था और फिर मैं सो गया।
परी की नजरों से भौगोलिक दूरियां तो बना ली थी लेकिन अब परी तो मेरे दिल के साथ साथ हर जगह छा गई थी ।मैं अपने हस्ताक्षरों पी का प्रयोग करता और मेरी खाने की थाली गिलोस पर अंग्रेजी में एंजल लिखता था… जिसका हिंदी में शाब्दिक अर्थ था परी…।अपनी पुस्तकों के कवर पर तितलियां चिपकाए रखता था,क्योंकि तितली फरी का संकेत होती ह।यह सब मेरे पास परी से जुड़े होने का प्रमाण था। हॉस्टल से मेस तक जाते समय रास्ते में नल पर थाली धोति और गिलास में पानी लेता और मुंह मै पानी भरता और सड़क पर इस तरह पानी निकलता की बहुत ही अच्छा पी बन जाता था। हर जगह सिर्फ परी..केवल परी।मेरा यहु पागलपन था. जो सीमा पार हो रहा था।
परी मुझे प्यार नहीं करती थी लेकिन मै तो उसे बहुत ज्यादा प्यार करत था ना और इसलिए क्योंकि वो मेरे दिल में बैठ गई थी और परी की जगह कोई भी नहीं ले सकता था।
अब ऐसी बात नहीं थी की मेरे अभी तक के जिंदगी में कोई और लड़की नहीं आई थी।बहुत आती क्योंकि मै अब कभी कभी स्टेज प्रोग्राम भी करने लगा था। और यूट्यूब पर मेरे एक दो सॉन्ग भी आ गए थे, जिसकी वजह से सारा विद्यालय, गांव,रिश्तेदार, दोस्त लोग मुझे गायक के रूप में जान चुके थे और फेसबुकिये फ्रेंडस भी पांच हजार से ज्यादा हो गए थे। मेरे पास और भी लड़कियों के मैसेज आते थे लेकिन मेरा उनको कोई रिसपोन्स नहीं होता था क्योंकि मै तो सिर्फ परी के लिए पागल था और बाकी लड़कियां मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती थी ,चाहे वो कैसी भी और कोई भी हो।
दिल है कि मानता नहीं गाने जैसी दशा मेरी थी। जब कभी परी सामने आ जाती तो बिना देखे रहा नहीं जाता था और देखने के बाद मेरा बहुत बुरि हाल हो जाता था। पूछो मत मुझे यस सब बहुत अच्छा लगता था ।
और इसी तरह मै परी को दूर से हु देख देख के ही खुश और मस्त रहने लगा था। और इसी कसमकश में इसी तरह यह गयारहवीं कक्षि का सत्र समाप्ति की और था और मई जून दो महीने की गर्मी की छुट्टियाँ भी होने होती थी……….।
कहानी जारी……
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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