मेरी प्रेम गाथा भाग 2
मेरी प्रेम गाथा भाग -2
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आठवीं कक्षा में पहुंचते ही आत्मविश्वास बढ़ गया था क्योंकि वरिष्ठता एक सोपान ओर चढ़ लिया था। इसी दौरान नवोदय प्रवेश परीक्षा का परीक्षा का परिणाम भी आने वाला था और परीक्षार्थियों से ज्यादा परिणाम के प्रति उत्तेजना मुझ में थी क्योंकि मेरी बुआ की लड़की अनामिका भी परीक्षार्थी थी। विद्यालय में उसका चयनित हो जाने फर मेरे अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ क्योंकि अपन तो अपने होते है। बुआ जी नै पापा की सहायतार्थ उसका विद्यालय में दाखिल करवा दिया और अब अनामिका मेरे नवोदय की विद्यार्थी थी। इसी बीच मैनें विद्यार्थियों की कानाफूसी को सूना कि विद्यालय में छट्ठी कक्षा में एक बहुत ही सुंदर लड़की आई है जिसको वो अपनी फूहड़ और अभद्र भाषा में मस्त माल कह रहे थे।इतनी ज्यादा सौन्दर्यता के चर्चे सुन कर मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाया और उत्सुकतावश मैं भी सौंदर्य दर्शन हेतु उस ओर चल पड़ा। साईंस लैब के द्वार पर अभिभावक के साथ एक पतली सी बॉयज कट वाली गोरे वर्ण की बहुत ही सुंदर लड़की कार्यालय की तरफ जाती दिखाई दी।उसकी सौंदर्यता और आकर्षक से आकृष्ट हो मेरी आँखें खुली की खुली रह गई ओर मैं टकटकी लगाए निरन्तरता में बस उस ओर ही देखति रहा जिस छोर तक मुझे वो दिखाई दी।मेरे दिलोदिमाग और जहन में वो इस कदर समि गई कि मैनें दिन में ही खुलु आँखों से सुफने देखने शुरू कर दिया और दृढता से ठान लिया था कि वो सुंदर परी हु मेरा प्रथम और अंतिम प्यार.होगी। मेरा मन आँफिस तक की 100 मीटर की दूरी में व्यस्त था और प्रेम के बीज अंकुरित हो रहे थे। संध्याकालीन असेम्बली हुई ,रात्रिभोज से अंतिम उपस्थिति से गुजरते हुए मैं वहीं 100 मीटर की दूरी में ही इतना व्यस्त था जैसे मैं आमजन नहीं बल्कि मूक और बधिर हूँ। उसका आभास मात्र ही मुझे शून्य तुल्य बना देता था। उसने नियमित रुप से कक्षा में जाना शुरू कर दिया था।अफने दिल की बात उस तक पहुंचाने एवं उसके दिल की बात जानने हेतु मेरी बहन अनामिका का मध्यस्थ के रूप में सहारा लेने का निर्णय लिया जो कि उसकी सहपाठिन थी परंतु कक्षा अनुभाग अलग था। अनामिका B तो मेरे वाली A में थी। ग्रीष्मकालीन अवकाश दौरान घर पर मैने अनामिका से उसके नाम और स्वभाव के बारे पूछा लेकिन शक ना हो जाने के डर से ज्यादा ना पूछ सका।अनामिका के साथ उसका छायाचित्र भी था जिसे में देर तक प्यासी आँखों से निहारता रहा जिसका नाम अनामिका ने प्रियांशु त्रिपाठी बताया था। कुछ दिन बाद उसका जन्माष्टमी था। प्रेयसी त्रिपाठी के जन्मदिन पर उसे उपहारस्वरूप एक मंहगा गोल्डन रंग का पैन लिया। .
सुखविंद्र सिंह मनसीरत