मेरी प्रेम गाथा भाग 10
प्रेम कहानी
भाग 10
*********
और इस तरह नवोदय की यात्रा करते हुए मैं अब विद्यालय के अंतिम गंतव्य यानि नवोदय की अंतिम कक्षा बारहवीं का छात्र था और फरी मेरे स्टेशन से दो स्टेशन पहले दसवीं कक्षि का सफर तय कर रही थी।नवोदय के अब तक के सफर में ग्याररहवीं कक्षा का सफर मेरे लिए काफी सुखद रहा क्योंकि इस स्टेशन पर मुझे मेरा प्यार परी की प्रेम सहमती मुझे मिल गई थी और अब मैं अपने जीवन के सातवें आसमान पर था।विद्यालय की बारहवीं कक्षा बॉर्ड की कक्षा थी और यहाँ इस स्तर पर विद्यार्थियों पर बहुत दवाब रहता था।
लेकिन मेरे ऊपर अच्छे अर्जित करने का दवाब नहीं था, मात्र पास होना ही था, उससे कहीं ज्यादा दवाब तो मेरे लिए परी को हासिल करना था,जिसके कारण मैं नवोदय में था अन्यथा मैं दसवें के बाद ही विद्यालय से चला जाता।और वैसे भी पढाई में मेरी कोई रुचि नहीं थी।और मेरे यहाँ रूकने का मकसद भी हासिल हो गया था, क्योंकि कि परी मेरे दिल के बहुत करीब थी ।
इसी दौरान ग्रीष्मावकाश अवकाश भी हो गए और मैं विद्यालय से घर आ गया और मुझे अब परी के कॉल का इंतजार था ।दिन रात मैं परी के फोन का इंतजार करता रहता और रात को बैचेनी के किरण नींद आँखों से कोसों दूर थी
आखिर मेरी इंतजाम की घड़ियां पूरु हो गई और एक रात परी ने मुझे कॉल किया और जैसे ही मैंनें परी की आवाज सुनी ,मेरा मुरझाया चेहरा फूल की भांति खिल गया। मै इतना खुश था कि मुझे सूझ नहीं रहा था कि कैसे और किस प्रकार से क्या बात करूँ।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि परी के जन्मदिन के बाद सारा परिदृश्य बिल्कुल सब बदल सा गया था ।मुझ से परी के साथ कोई भी बात नहीं हो पा रही थी। परी की बातों से मुझे आभास हो रहा था ,जैसे वो मुझसे बहुत कुछ कहना चाहती है और उससे कहीं ज्यादा मै भी परी को बहुत कुछ कहना चाहता था…..।
रात बारह बजे से हमारी कॉल शुरू हुई थी और सारी रात यूँ ही कॉल चलती रही लेकिन हमारी बिना सिर पैर की बातें ख़त्म ही नहीं हो रही थी और अब उसका हर रात को कॉल आती थी और सारी रात हम प्रेमी जोड़े की भांति आपस में वार्तालाप में जुटे रहते।बातों ही बातों में मैंने अपनी सारी बाते परी को बता दी कि मैंने उसे पाने कज लिए क्या क्या पापड़ नहि बेले।यहाँ यक कि मैं उसके लिए अपनी जिंदगी से खेल गया।
और परी ने भी मुझे दिल की सारी बातें बताई कि उसे पता था कि मैं उसको बहुत प्यार करता था और मैं उसके लिए जो भी करता था ,उसे सभी बातों का पता चल जाता था।यहाँ तक भी पता चल जाता था कि मैं उसके ना आने पर बीमारी का बहाना बना कर कक्षा में नहीं जाता था और हॉस्टल में ही रह जाता था। उसकी कक्षा की लड़कियां उसे सारी छोटी छोटी बाते बता देती थी कि मैं उससे बहुत प्यार करता था और मेरी प्रशंसा भी करती थी।
जब मैने यह पूछा कि उसनें शिकायत क्यों की थी।जवाब में माफी मांगते हुए बताया कि उसे नहीं पता था कि मामला इतना अधिक बढ़ जाएगा।
परी ने बताया कि वह मुझे बहुत प्यार करती थी।जब भी मैं उसके सामने जाता तो कैसे उसकी सांसे रुक जाती थी और जब मैनें उसे प्रेम प्रस्ताव प्रस्तुत किया था,उस समय उसके द्वारा मना किए जाने के बावजूद भी वह कैसे और कितना मेरे लिए रोती थी, क्योंकि वह भी पत्थर दिल नहीं बल्कि एक भावुक इंसान थी।
मेरी आँखों में आँसू आ गए और मैंने नम आंखों से रोते हुए परी से कहा कि जब वह उसे इतना प्यार करती थी तो उसनें इतना इंतजार क्यों करवाया…..और.. फिर मै तेजी और जोर जोर से सुबक सुबक कर रोने लगा..।.परी ने मुझे चुप कराते हुए कहा कि संदीप प्लीज चुप हो जाओ… ।….. प्लीज़ मत रोओ…आपको मेरी कसम …चुप हो जाओ।उसने बताया कि उसे इन सब चीजों से बहुत डर लगता था और उसने सोच रखा था कि वह कभी किसी लड़के से बात नहीं करेगी, लेकिन मैंने उसका दिल जीत लिया और उसके अटिट्यूड को होतोड़ कर रख दिया।उसने बताया कि उसे फता था कि मैं उसे बहुत प्यार खरता था मेरे ज्यादा उसे कोई ओर इतना प्यार नहीं कर सकता था।और यह कह कर परी भी भावुक होकर फूट फूट कर रोने लगी। उस स्थिति में यदि वह मेरे पास होती तो उसे शांत करने हेतु बांहें फैला कर अपनी बाँहों के आगोश में ले लेता।
मैने उसे चुप कराते हुए कहा कि आई लव यू वैरी मच..प्लीज चचफु हो जाओ।और वह सुबकते हुए चुप हो गई और मुस्कुराते हुए अलविदा कह कर फोन बंद कर दिया।
अब हम दोनों का प्यार इतना मजबूत हो गया था कि बिना बात किए हम रह नहीं सकते थे और एक दूसरे की कमजोरी बन कर आदि हो चुके थे और जब कभी परी घर से बाहर निकलती तो कॉल करके वह बता देती थी और मैं बाइक पर उससे मिलने के लिए चला जाता था। और कई बार मैं अश्वनी भैया की सहायता ले लेता था।इस तरह ये हमारी छुट्टियाँ भी समाप्त गई और हम विद्यालय आ गए।
अब तो स्कूल पूरा स्वर्ग की भांति लगता था । सुबह से शाम तक का समय यूं गुजर जात थि कि पता ही नहीं चलता था समय कैसे बीत जाता था। और एक दिन स्कूल में मेरे मोबाइल पर एक कॉल अाई और मैंने उठाया तो सामने से परी बोली परी। मैनै कहा.. अरे परी तुमने कॉल कैसे की तो परी ने बताया कि वह कैंटीन से मैडम को यह कह कर बात कर रही है कि उसे अपने भैया से बात करनी है।और इस तरह हर शनिवार को फोन पर हमारी बातचित होने लगी।
अब स्कूल में मौसम बहुत अच्छा लगता था क्योंकि अगर मै नहीं दिखता तो परी भी मुझे ही खोजती थी और अब तो सब कुछ बदल सा गया था। अब परी मुझे केवल देखती ही नहीं थी बल्कि देखकर मुस्कुरा भी देती थी… ।
गेम टाइम में मै कबड्डी खेलता था और जब हाउस वाइस मैच होता तो सारी लड़कियां भी मैच देखने आती थी और जिस दिन परी कबड्डी देखने आ जाती तो उस दिन तो मेरे अंदर इतना जोश आ जाता था कि कोई रेडर बच कर नहीं जा पाता था सब को उठा कर बाहर फैंक देता था।
अब परीक्षाएं भी आने वाली थी और मैंने परी को समझाया कि हम दोनों की बॉर्ड कु परीक्षाएं हैं और हमें इसे गंभीरतापूर्वक पढाई फर ध्यान लगाना चाहिए,ताकि हमारी आशिकी का परीक्षा परिणाम पर असर ना पड़े।अब हमारी बातें कम होती थी।आँखों ही आँखों और ईशारों ही ईशारों में हमारा बातें होती थी।
कुछ दिन बाद हम दोनों की परीक्षाएं समाप्त हो गई और अब नवोदय की वो घड़ी आ गई थी जिसे सोच कर आंख नम हो जाती थी वो था नवोदय से विदाई लेना।
सारे लोग परीक्षा के बाद शिक्षकों से मिलकर रोते हुए घर जा रहे थे,क्योंकि जहाँ पर आफने जीवन के अनमोल सात साल व्यतीत किए ,वहाँ पर भावनात्मक रूप से जुड़ चुके थे।विद्यालय को छोड़ने का किसी का भी मन नहीं कर रहा था।यह हमारी ऐसी विदाई थी मानो कोई लड़की शादी के बाद विदा हो रही हो।सचमुच भावुक घड़ी थी।सच्चाई यह थी कि यहाँ पर हमारा अन्न जल पूरा हो चुका था।अंततः हमने रोते बिलखते गले लगकर एक दूसरे से विदाई ली और भविष्य की शुभकामनाएं दी।
और सबसे ज्यादा चिंता मुझे इस बात की थी कि नवोदय के साथ साथ परी भी मुझसे जुदा और दूर हो रही थी। गेम टाइम हुआ और परी फील्ड पर अाई ।मै भी फील्ड पर गया और वहाँ परी मुझे देख रही थी ।ऐसा लग रहा था ,मानो परी अभी रो देगी और उसको इस तरह देख मुझ से भी नहीं देखा नहीं गया और मै हॉस्टल में चला गया और वहाँ देखा कि हॉस्टल खाली था और सभी चले गए थे।मैं शाम तक रूका और खिड़की से अंतिम बार परी की सुंदरता को निहार रहा था।परी भु मुझे जी भर कर देख हॉस्टल में चली गया ई और मैं मायूसी के साथ घर की ओर..।सारे दोस्त मुझे गेट पर छोड़ने आए और मै सबको पकड़ कर गले लगाकर बहुत रोया ।रास्ते भर में रोते हुए घर आया। घर पहुंच कर मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ।खाना भी हल्क से पिर नही हो रहा था। मम्मी ने किसी तरह बहलाक दो रोटियां खिला दी।
शनिवार को परी ने कैंटीन से कॉल किया और वह परी संदीप उसे बहुत बुरा लगा रहा था और उसका स्कूल जाने का मन नहीं करता था। मेरे बिनि उसे सूना सूना लगता है। फिर परी ने अच्छा समाचार सुनिते हुए कहा कि संदीप एक महीना और इंतजार कीजिए ,क्योंकि फिर गर्मी की छुट्टियाँ हो रही थी और फिर घर आकर ढेर सारी बातें करते हैं……..।।
और इस तरह परी की दसवीं और मेरा नवोदय का सफर ही पूरा हो गया था।
कहानी जारी……
सुखविंद्र सिंह मनसीरत