मेरी प्रिया *********** आ़ॅंसू या सखी
मेरी प्रिया
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आ़ॅंसू या सखी छंद
14 अंतिम दो गुरू हेतु
मगण हो या यगण हो, आदि में
द्विकल त्रिकल त्रिकल मान्य हैं।
मानव (हाकलि ) जैसा है पर लय
भिन्न-है। हाकलि में तीन चौकल अनिवार्य,
मानव में तीन चौकल नहीं होते ।आदि में द्विकल त्रिकल त्रिकल का निषेध है।
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मेरी प्रिया
मेरे मन को भायी हो,
तुम सुंदर सुघड़ सलोनी।
तुम शीतल शशि किरणों सी,
तुम नोनी से भी नोनी।
तुम चंचल कल-कल सरिता,
तुम पावन दोनों कूले ।
जबसे तुमको देखा है,
हम अपना सब कुछ भूले।
जीवन में मेरे आईं
बनकर तुम एक घटा सी ।
तुम दमक दामिनी जैसी,
छोड़ी छिप गईं छटा सी ।
भावों की हरी फसल अब,
यह दिन दिन सूख रही है।
मौसम की शीतल वायू ,
लगता है लूक रही है।
सम्पूर्ण सूख ना जाये,
दे दो दर्शन का पानी।
अटके हैं प्रान तुम्हीं में,
मेरे सपनों की रानी।
मानव छंद 14
अंत गुरू/तीन चौकल हो
तो यही हाकलि
रूपसी
गोरे गात ललाई हो।
लगतीं मधुर मलाई हो।
अंग अंग सिव रतलामी।
नहीं कहीं कोई खामी ।
जिसको नजर उठा देखो।
बना गुलाम हुआ लेखो ।
उॅंगली नाच नचाओ तुम।
क्षण बसंत ऋतु लाओ तुम।
तरु के पुष्ट सहारे से ।
भाव प्रेम के मारे से ।
धीरे-धीरे उकसातीं ।
आग बराबर भड़कातीं।
जब वह बाहें फैलाये।
पत्र पत्र गाना गाये।
बेला सी चढ़ जाओ तुम।
क्षण बसंत ऋतु लाओ तुम।
सबसे ही बचकर दे दें।
जो चाहो रचकर दे दें।
साथ तुम्हारा पाने को।
अगला मंच जमाने को।
नाम बराबर फिक्स करें।
काम यथावत मिक्स करें।
सज धज खूब जमाओ तुम।
क्षण बसंत ऋतु लाओ तुम।।
ऋषी मुनी ज्ञानी ध्यानी।
माया सबसे लिपटानी ।
व्यर्थ कहो यह होश नहीं।
इसमें कवि का दोष नहीं।
कुंभ पर्व का गोता है।
योग मिले यह होता है।
शुभ मिल पुण्य कमाओ तुम।
क्षण बसंत ऋतु लाओ तुम।
सखी बना आ़ॅंसू गाये,
जयशंकर प्रसाद लाये ।
यह मानव से भिन्न रहे ।
एक कहे जो खिन्न रहे ।
गुरु कुल छंद सिखाता है।
बार बार समझाता है।
अब तो कलम उठाओ तुम।
क्षण बसंत ऋतु लाओ तुम।
गुरू सक्सेना
27/7/24