मेरी पहली मोहब्बत !
मेरी पहली मोहब्बत थी तुम,
इश्क नहीं इबादत थी तुम।
सजदे में हर पल रहते थे,
खुद से ही बातें करते थे।
तुम मुस्कुरा भर जो देती,
दिन मेरा बन जाता था।
आने की जो आहट मिलती,
मन मंदिर खिल जाता था।
तुम्हारी यादों में खोए ऐसे,
रातों की भी नींद गवाई।
तुम्हारी खातिरी देखो कैसे,
सबसे ली हमने रुसवाई।
मोहब्बत में कुछ दिखता नहीं,
मन जो करता लगता सब सही।
उम्र का तकाज़ा कुछ अजीब है,
दोस्त भी अपने हो जाते रकीब हैं।
सपने थे जो, सपने ही रह गए,
जुदाई तुम्हारी देखो हम सह गए।
यादों में मेरी अब भी तुम हो,
ख्वाबों में शायद कहीं गुम हो।