मेरी परछाई
अंजान हूँ अकेली गुमराह चल रही हूँ,
फिर भी मैं तेरे साथ हर राह चल रही हूँ।
मुझको बहुत दिनों से पहचानता है तू,
ईक आग का दरिया हूँ ये जानता है तू।
हर रोज मुझको देख कर दुत्कारता है तू
फिर भी तेरी दुत्कार का सत्कार कर रही हूँ
परछाई हूँ तेरी,इसलिये तुझसे प्यार कर रही हूं।।।