मेरी परछाई
****** मेरी परछाई *****
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तुम ही मेरी परछाई हो,
बेशक हो गई पराई हो।
तुम ही तो मौज बहारां हो,
ख्यालों मे अब भी छाई हो।
तुम्हीं सागर सा किनारा हो,
मेरे मन की गहराई हो।
हर्षित सी होकर करो बसर,
चाहे मिली मुझे तन्हाई हो।
तुमने ही है गमगीन किया,
तुम्हीं गमों की दवाई हो।
जान से प्यारी मस्तानी हो,
सनम हमारी हरजाई हो।
मनसीरत की प्रीत निराली,
मिली उम्र भर रुसवाई हो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)