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25 Nov 2018 · 1 min read

मेरी न सुनो सुन लो भावी की

?

* मेरी न सुनो सुन लो भावी की *

खिलते हैं अब भी फूल सुधे
सुगंध कहीं धर आते हैं
सावन पतझर एकसाथ
अश्रु झर-झर जाते हैं

खिलते हैं अब भी फूल सुधे . . . . .

सपनों से सपनीली आँखें
सपनों से अब हीन हुईं
बिना तुम्हारे प्राणप्रिये
दीनों से भी दीन हुईं
छवि तुम्हारी लोच रही हैं
बिन जल जैसे मीन हुईं

नयन निशा के आस भरे
रह-रह भर-भर आते हैं

खिलते हैं अब भी फूल सुधे . . . . .

लोचक अंकित धूप खिली-सी
शरद ऋतु मुस्कान प्रिये
हमने देखा जी भर के
लोचन को अभिमान प्रिये
निरास की घिरती छाँव में
आस का अब औसान प्रिये

आस-निरास के झूले में
जाते ऊपर नीचे आते हैं

खिलते हैं अब भी फूल सुधे . . . . .

दृष्टिपथ में तुम ही रहे
तुमसे ही हो गई यूँ दूरी
मधुर मदिर आकल्पन में
यह कैसी धुंधली मजबूरी
मिलन विरह के गीत बहुत
नवसर्जन कविता नहीं पूरी

शब्द शब्दों के संग-साथ
छू लूं तो बहुत भरमाते हैं

खिलते हैं अब भी फूल सुधे . . . . .

बिरहा दावानल दृग दहकते
मोहिनी मूरत झलकाओ
मेरी न सुनो सुन लो भावी की
शिवा रमा ब्रह्माणी लौट आओ
समय बीतता स्वर-संधान का
आओ मेरे संग गाओ

बीते के फिर से दर्सन को
चितवनचीन्हे अकुलाते हैं

खिलते हैं अब भी फूल सुधे . . . . . !

वेदप्रकाश लाम्बा
९४६६०-१७३१२ — ७०२७२-१७३१२

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 1 Comment · 467 Views
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