मेरी नींद
मेरी नींद
मुझे याद हो गई है नींद ना आने की बाराखड़ी
मैंने इसकी व्याकरण भी तैयार कर ली है
तारो का पीछा करते-करते रात में और लुका छुपी खेलते खेलते चांद के साथ
मेरी नींद को गुस्सा आ जाता है भेड़ों को गिनते गिनते
तो वह बाहर चली गई और सराहने लगी उन्हें
धीरे-धीरे उनमें बातें होने लगी और कहानियां की बात छीड गई
मेरी नींद ने कई कहानियां सुनी उनकी
कुछ उनके विचार उनके भविष्य की योजनाओं से जुड़े हुए थे
कुछ नए प्रतिबिंब गजनी की बातें कुछ पछतावे जो पीछे छूट गए थे कुछ वर्तमान दर्द
मेरी नींद बहुत अच्छी श्रोता है बहुत ध्यान से सुनती है लोगों की बात उसने यह सारी कहानी और सारी बातें मुझे बहुत आराम से सुनाएं पूरी रात
मैं सुबह उठी अपनी नींद भरी आंखों से…….
पुलकिता आनंद
खेजड़ी की आग से उजला चिपको
बिश्नोई अपने प्राण न्यौछावर कर देगा,मगर पेड़ को जीवित रखेगा।
खेजड़ी का पेड़ एक खजाना है, इस नियम का उन्होंने अनुकरण किया।
पेड़ न काटने का उन्होंने अनुरोध किया
“कटा हुआ सिर सस्ता है एक कटे हुए पेड़ से”
उनका करुण रुदन उड़ा दूर तक अनंत आकाश में
वादी गूंज उठी
गायन गूंज उठा
जब उठा स्वर हर जीव से
छिन्न-भिन्न, जीर्ण क्षीण, हतप्रभ
हो गई थी ,वादी पेड़ों की लाशों से।
देख रही थी नाच पेड़ों की मृत्यु का,
महिलाएं आलिंगन करने लगीं हरि जिंदगी का।
जीव बीज, पेड़ों को बाहों में भर कर
खेजड़ी की आग से प्रज्वलित हुआ चिपको,
एक आंदोलन से दूसरा आंदोलन
पेड़ों को बचाने वालों ने अपने जीवन को स्वाह किया, जीवन को बचाने के लिए।
और मेरी आशा फिर से जीवित हो जाती है ,
जब मैं देखती हूं किसी कोपल कों जीवित होते हुए।
पुलकिता आनंद