मेरी नन्ही परी।
नन्हीं -सी छोटी परी,जब से आई गोद।
देख-देख हर्षित हृदय, छाया मंगल मोद।।
दमक रही सौन्दर्य से,कुसुमित कोमल अंग।
दुनिया की सारी खुशी,लाई अपने संग।।
मंगल मंजुल मृदुल छवि,जैसे पाटल लाल।
होंठ गुलाबी पंखुड़ी,रसना शब्द रसाल।
मुक्ता मणि-सी सीप में,चमक रहें दो आँख।
ठगी -ठगी सी देखती,मेरे दोनों पाँख।।
मुख मंडित ज्यों चंद्रमा,प्रखर सूर्य सम भाल।
सुमन मधुर आभा लिए,दमक रहे द्वौ गाल।।
जुही-चमेली सा बदन,रजत चाँदनी संग।
प्रथम प्रहर की हो प्रभा, इन्द्र धनुष का रंग।।
क्रंदन-क्रीड़ा रस सरस,जगे हृदय आमोद।
मंद-मंद मुस्कान से,करने लगी विनोद।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली