मेरी नज़र
मेरी नजर!
धुंधली हो गई है।
ठीक
दीवार पर टंगी
तेरी तस्वीर की तरह!
भविष्य दिखता नहीं।
युग बीत रहा है
और
अतीत धुंधला-सा दीख पड़ता है।
वैसे ही
जैसे
चीजें दिखती हैं-
गंदलाए बहते पानी के उस पार!
जैसे सरक रहा हो कोई साया-
घने कोहरे में।
आँखें मिंचमीचाता हूँ,
कोशिश करता हूँ!
तू,
मेरी ममता की छाया!
दिख पड़ती है-
ओस की अदृश्य फुहारों के पार।
एक मृग मरीचिका-सी,
एक भुलावा-सी,
वैसे ही
जैसे
टंगा हो क्षितिज पर
मेघ कोई!!