मेरी दूसरी माँ….मेरी दीदी
मेरी दूसरी माँ….मेरी दीदी
अपनी दीदी का नाम
हम इसलिए जानते थे
क्योंकि हमारे बाबू अम्माँ को
” माधुरी की माँ ” कह कर पुकारते थे
मैं दीदी की भूरी आँखों से डरती थी
कभी निगाह ऊँची नही करती थी
मेरी पलकें झुक जाती थीं
फिर भी वो मेरी आँखें पढ़ जाती थी
अगर दीदी की आँखों से मैं ना डरती
जाने मैं क्या क्या शैतानियाँ करती
मैं तो दीदी से थर थर काँपती थी
बीच वाली बहन बगावत पर उतरती थी
दीदी हद से ज्यादा समझदार थी और है
कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार थी और है
नॉवेल पर भी कवर चढ़ा कर पढ़ती थी
हम बिगड़ जायेंगे ये सोच ऐसा करती थी
अपना दुख तो कभी नही कहती है
हमारा दुख भी खुद ले लेती है
मेरी हर बात की ख़बर उसको रहती हैं
मुझसे पहले मेरी परेशानी समझ लेती है
अपने बच्चों से ज्यादा प्यार करती है
इस बात में उदाहरण बन कर उभरती है
मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती है
मेरे जीने का संबल वो बन जाती है
बहन होकर माँ से ज्यादा प्यार करती है
मेरी झोली में दुनिया का सुख भरती है
दीदी दीदी करते मुँह नही थकता है
सारा जहाँ दीदी पर ही आकर रूकता है
ऐसी खूबसूरत नियामत है ऊपरवाले की मुझ पर
उसके रूप में दूसरी माँ न्योछावर की है मुझ पर ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/08/2020 )